पलामू. जहां आस्था की बात होती है, वहां पौराणिक मान्यताएं और कथाएं उभरकर सामने आती हैं. हिंदू धर्म में विभिन्न पर्व और त्योहारों की अपनी अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं होती हैं, जो किसी न किसी कथा से जुड़ी होती हैं. ऐसी ही एक कथा और मान्यता से जुड़ा व्रत जीवित्पुत्रिका है, जिसे लोग जितिया भी कहते हैं. क्या आप जानते हैं कि इसकी शुरुआत कब हुई और कैसे हुई?
यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से शुरू होगी और 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी. इसलिए इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा.
द्वापर युग की कहानी
पलामू जिले के रेड़मा स्थित भगवती भवन के पुजारी श्यामा बाबा बताते हैं कि यह पूजा माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती हैं और विधि-विधान से पूजा कर भगवान से अपने बच्चों के दीर्घायु होने की प्रार्थना करती हैं. उन्होंने कहा कि इस परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी, जो आज तक चली आ रही है. इसके पीछे की कहानी बहुत रोचक है.
उन्होंने बताया कि इस काल में श्याल वाहन राजा थे, जिनके पुत्र थे जीमित वाहन, जो बड़े प्रतापी थे. एक बार जब जिमित वाहन राजा अपने ससुराल पहुंचे, तो रात में एक वृद्ध महिला की रोने की आवाज सुनी. उन्होंने सहन नहीं किया और वृद्ध महिला के घर पहुंचे. जब उन्होंने महिला से रोने का कारण पूछा, तो महिला ने बताया कि इस गांव में एक गरुड़ रोज रात में आता है और नन्हे से बालक को शिकार बनाता है. कल मेरे बेटे की बारी है. आप तो मेरी स्थिति भी देख रहे हैं, इसी सोच में परेशान हूं कि कल मैं अपने बच्चे का मृत शरीर देखूंगी. तब राजा जिमित वाहन ने उन्हें कहा कि आप परेशान न हों, आपका बच्चा सुरक्षित रहेगा.
राजा के साहस से खुश हुआ गरुड़
अगले दिन गरुड़ का सामना करने के लिए राजा पहुंचे और गरुड़ से बच्चों को छोड़ने की बात कही. राजा ने कहा कि अगर आपको भोजन करना है, तो मेरा करें, बच्चों को छोड़ दें. गरुड़ ने उनकी पहचान पूछी, तो राजा ने कहा कि आप अपना पेट भरें, जान-पहचान में समय व्यर्थ न करें. गरुड़ को शंका हुई और उसने कहा कि आपका साहस देखकर मैं प्रसन्न हूं. मांगिए, आप क्या वर मांगना चाहते हैं? राजा ने कहा कि अगर आप वर देना चाहते हैं, तो आज के बाद आप किसी भी बच्चे का भक्षण नहीं करेंगे, और जितने बच्चों का भक्षण किया है, उन्हें वापस जीवित कर देंगे.
इसके बाद गरुड़ ने सभी बच्चों को जीवित करने का वरदान दिया और वहां से चले गए. अगले दिन जब वृद्ध माता अपने बच्चों को सुरक्षित देखती हैं, तो वे बेहद प्रसन्न होती हैं. हालांकि, बच्चे के वियोग में उन्होंने 24 घंटे से अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था. उसी प्रकार वे एक व्रत को पूर्ण करती हैं. इसके बाद से यह परंपरा शुरू होती है, जिसमें माताएं अपने बच्चों के दीर्घायु की कामना हेतु निर्जला व्रत करती हैं. यह कार्यक्रम द्वापर युग से चलता आ रहा है, और इसकी महत्ता आज भी बरकरार है.
FIRST PUBLISHED : September 21, 2024, 13:07 IST