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Why Rice is used in tilak: जहानाबाद के आचार्य राजेश कुमार मिश्रा (MA, संस्कृत) से जानेंगे कि सनातन धर्म में अक्षत यानी चावल क्यों इतना महत्वपूर्ण और पूजनीय है, जिसका उपयोग बहुत कार्यों में किया जाता है.
जहानाबादः सनातन संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है. यहां हर एक प्रकार के कार्य अलग-अलग जगह पर देखने को मिल जाता है. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे माथे पर लगने वाले तिलक का, जिसमें अक्षत यानी चावल का ही प्रयोग किया जाता है. हालांकि, क्या आपने यह कभी सोचा है कि गेहूं, जौ, बाजरा या अन्य दूसरे अनाज का तिलक क्यों नहीं लगाया जाता है. रक्षा बंधन, भाई दूज, पूजा पाठ और धार्मिक कार्यों में सिर्फ माथे पर तिलक में चावल का ही प्रयोग होता है. तो आइए आज जहानाबाद के आचार्य राजेश कुमार मिश्रा (MA, संस्कृत) से जानेंगे कि सनातन धर्म में अक्षत यानी चावल क्यों इतना महत्वपूर्ण और पूजनीय है, जिसका उपयोग बहुत कार्यों में किया जाता है.
तिलक में सिर्फ अक्षत का ही क्यों होता है प्रयोग
शास्त्र के जानकार राजेश मिश्रा का कहना है कि चंदन ललाट के मध्य भाग में लगाया जाता है. जहां गुरु का वास होता है. जब गुरु का वास होता है और वहां चंदन लगता है तो गुरुत्व जाग जाता है. ऐसे में आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होता है. यह सबको मालूम है कि गुरु का मतलब बुद्धि और ज्ञान का संसार अर्थात जब ललाट के बीच में चन्दन लगता है तो शरीर में पॉजिटिव एनर्जी का संचार होने लगता है.
ललाट पर चन्दन और गुरु तत्व का संबंध
राजेश मिश्रा के मुताबिक, माथे पर तिलक में अक्षत लगाते हैं, जिसका अर्थ छत नहीं होना. यानी जो अपने आप में ही पूर्ण हो. ऐसे में जब तिलक के साथ अक्षत लग जाता है तो वह परिपूर्ण हो जाता है. अक्षत का निर्माण धान से होता है, जो अन्नपूर्णा माता का प्रसाद है. जब हम चावल लगाते हैं तो धरती यानी अन्नपूर्णा माता का पूरा तेज अपने पुत्र की ओर आता है. ऐसे में हमारे अंदर गुरुत्व जागृत हो जाता है. यही कारण है कि तिलक में अक्षत लगाया जाता है, ताकि हम पूर्ण हो जाएं.
अक्षत से जागृत होता है आध्यात्मिक ऊर्जा
तिलक में अक्षत लग जाने से धन धान्य की समृद्धि, बुद्धि और वैभव बढ़ता है. अक्षत को कितना भी पानी में डाल दें वो फूलकर लंबा हो जाएगा, लेकिन कभी टूटेगा नहीं. उसी प्रकार से हमारे जीवन में अक्षत हमें कभी टूटने नहीं देता है.
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