Kilol Kunj Ceremony : इंद्रेश उपाध्याय की शादी इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है. भक्ति की दुनिया में बड़ी पहचान रखने वाले इंद्रेश महाराज की शादी वैसे भी एक सामान्य आयोजन नहीं होने वाली थी. मथुरा से लेकर जयपुर तक इस शुभ अवसर को देखने और समझने के लिए लोग स्वाभाविक रूप से आकर्षित हो रहे हैं. जहां जयपुर के ताज आमेर होटल में भव्य तैयारियां की गई थीं, वहीं शादी से पहले होने वाली रस्मों ने पूरे समारोह को और भी खास बना दिया था. इन्हीं रस्मों में एक है “किलोल कुंज”, जिसे इस शादी में हल्दी और मेहंदी के मौके पर अपनाया गया. आमतौर पर हल्दी और मेहंदी को हम साधारण पारंपरिक कार्यक्रम के रूप में देखते हैं, लेकिन इंद्रेश और शिप्रा के इस समारोह में इसे एक अलग अर्थ दिया गया. यहां किलोल कुंज को केवल एक शादी की रस्म नहीं, बल्कि आनंद, संगीत, भक्ति और खुशी से जुड़ी एक जीवंत झलक के रूप में रखा गया, जहां मेहमानों के लिए संस्कृति और उमंग का सुंदर मेल देखने को मिला.
किलोल कुंज क्या है और इसे यह नाम क्यों दिया गया?
किलोल कुंज शब्द सुनने में जितना आकर्षक लगता है, उतना ही इसका अर्थ भी आनंद से जुड़ा है. इस नाम का मूल भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के उस सुकून भरे स्थल से आता है, जहां वे जल और संगीत के बीच खेल-खेल में समय बिताते थे. गोवर्धन में स्थित यह स्थान प्रसन्न माहौल, मधुर संगीत, उत्साह और हल्के-फुल्के मेलों जैसा ही अनुभव कराता है. इसी वजह से इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा के मेहंदी–हल्दी कार्यक्रम को यह नाम दिया गया, ताकि पूरा माहौल प्रेम, खुशी और आध्यात्मिक आनंद से भर सके.
जयपुर में किलोल कुंज का पूरा माहौल
जयपुर के ताज आमेर होटल में जब यह कार्यक्रम हुआ तो वातावरण सिर्फ उत्साह से नहीं, बल्कि भक्ति से भी भर गया. संगीत, भजन, सुंदर सजावट और लोगों की खुशी इस पूरे आयोजन को खास बना रही थी. जया किशोरी की मौजूदगी ने माहौल को और भी पवित्र बना दिया. यह सिर्फ एक विवाह रस्म नहीं लग रही थी, बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो भगवान कृष्ण की छाया स्वयं इस आयोजन पर पड़ रही हो.
इंद्रेश महाराज की लोकप्रियता और शादी का प्रभाव
भक्ति और आध्यात्मिक कथाओं के माध्यम से युवा वर्ग में इंद्रेश की पहचान काफी मजबूत है. यही कारण है कि उनकी शादी के हर कार्यक्रम में भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का समावेश दिखाई देता है. किलोल कुंज के दौरान इंद्रेश खुद भी भजन गाते नजर आए, जिससे उपस्थित लोगों का अनुभव और भी यादगार बन गया. शुक्रवार को वे शिप्रा शर्मा के साथ वैदिक रीति से सात फेरे लेंगे, जिसके बाद शाम में उनका रिसेप्शन होगा.
किलोल कुंज शादी में क्यों खास होता है?
हल्दी और मेहंदी जैसे पारंपरिक कार्यक्रम आमतौर पर परिवार की खुशी और उत्साह का प्रतीक होते हैं. लेकिन जब इन्हें किलोल कुंज की तरह भक्ति, संगीत और संस्कृति से जोड़ा जाए, तो समारोह की चमक कई गुना बढ़ जाती है. यह रस्म नई शुरुआत के लिए उत्साह, प्रेम और सकारात्मकता का एक सुंदर प्रतीक बन जाती है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)







