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Jitiya Vrat 2025 Auspicious coincidence know jivitputrika vrat katha and shubh yog and importance of jivitputrika vrat | जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ मासिक जन्माष्टमी का शुभ संयोग, कृष्णजी को जरूर अर्पित करें यह चीज, फिर देखें चमत्कार


आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी और जीवित्पुत्रिका व्रत है. जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व संतान-सुरक्षा से जुड़ा है. यह विशेषकर माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और कल्याण के लिए करती हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि संतान पर आने वाले आयु संकट, रोग या अकाल मृत्यु के योग माता के उपवास और तप से टल सकते हैं. इस दिन माताएं निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. आइए जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, कथा और पूजा विधि…

जीवित्पुत्रिका व्रत 2025 शुभ योग
दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह के 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 12 बजकर 41 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय शाम के 4 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 6 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. इस दिन सूर्य सिंह राशि में रहेगा और चंद्रमा रात के 8 बजकर 3 मिनट तक वृषभ राशि में रहेंगे, इसके बाद मिथुन राशि में संचार कर जाएंगे, जहां गुरु ग्रह के साथ युति बनेगी. साथ ही इस दिन रवि योग, सिद्धि योग और गजकेसरी योग भी बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व संतान-सुरक्षा से जुड़ा है. यह विशेषकर माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और कल्याण के लिए करती हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत में माताएं निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं. संतान की कुशलता के लिए जप, कथा और संकल्प किए जाते हैं. इसका सीधा संबंध संतान को मृत्यु-दोष से बचाने और दीर्घायु प्रदान करने से है. इस प्रकार जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व केवल धार्मिक आस्था नहीं बल्कि शास्त्रसम्मत संतान-सुरक्षा साधन माना गया है.

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
पुराणों के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. एक कथा के अनुसार, इसका संबंध महाभारत काल से है. गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने खुद को गरुड़ को सौंपकर एक नागिन के बेटे की जान बचाई थी, जिसके बाद से संतान की लंबी आयु के लिए इस व्रत को करने का प्रचलन शुरू हुआ. माताएं इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं, जिससे उनकी संतानों को कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनकी दीर्घायु, सुख-समृद्धि व कल्याण होता है. यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. नेपाल में इसे जितिया उपवास के रूप में जाना जाता है.

जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
इसी के साथ ही, इस दिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी भी है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से यश, कीर्ति, धन, ऐश्वर्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

कृष्णजी पर अर्पित करें मोर पंख
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हुआ था. इसलिए हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है. मासिक कृष्ण जन्माष्टमी रविवार की सुबह 5 बजकर 4 मिनट से शुरू होकर सोमवार की सुबह 3 बजकर 6 मिनट तक रहेगी. मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पूजा के दौरान भगवान कृष्ण को मोर पंख चढ़ाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है, जो परिवार के सदस्यों को बुरी नजर और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाती है.

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