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Kale Til In Pitru Paksha: सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करने से सभी पितरों की संतुष्टि होती है, चाहे उनके श्राद्ध किसी कारणवश छूट गए हों. यह पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है और इस दिन श्राद्ध व तर्पण करके पितरों को विदा कर दिया जाता है. पितृपक्ष की पूजा व धार्मिक अनुष्ठानों में काले तिल का प्रयोग किया जाता है. आइए जानते हैं श्राद्ध अनुष्ठानों में क्यों किया जाता है काले तिल का प्रयोग…

इसलिए पितरों के कार्यों में होता है काले तिल का प्रयोग
गरुड़ पुराण के अनुसार, काले तिल और कुशा दोनों की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अपने अत्याचारों से पीड़ित किया तो भगवान विष्णु अत्यंत क्रोधित हुए. उस समय उनके शरीर से पसीने की बूंदें निकलीं, जो पृथ्वी पर गिरकर काले तिल में परिवर्तित हो गईं. यही कारण है कि काले तिल को दिव्य और पवित्र माना जाता है. चूंकि भगवान विष्णु पितरों के आराध्य माने जाते हैं, इसलिए पितृ तर्पण में काले तिल का विशेष महत्व है.

काले तिल से पितर होते हैं प्रसन्न
मान्यता है कि काले तिल में पितरों को आकर्षित करने और तर्पण स्वीकार करवाने की शक्ति होती है. जब जल के साथ काले तिल अर्पित किए जाते हैं, तो पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृ दोष से जुड़े ग्रह शनि, राहु और केतु को शांत करने के लिए काले तिल का उपयोग किया जाता है. श्राद्ध के दौरान काले तिल अर्पित करने से इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और परिवार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.
यहां यह समझना आवश्यक है कि श्राद्ध और तर्पण में केवल काले तिल का उपयोग होता है, सफेद तिल का नहीं. ज्योतिष में सफेद तिल का संबंध चंद्रमा और शुक्र से माना जाता है. इसका उपयोग शुभ कार्यों, प्रसाद और सुख-समृद्धि से जुड़े कर्मकांडों में होता है. जबकि पितृ कर्म गंभीर और आत्मा की शांति से जुड़ा अनुष्ठान है, इसलिए उसमें काले तिल को ही प्रधानता दी जाती है.

काले तिल के साथ कुश का भी प्रयोग
श्राद्ध विधि में काले तिल के साथ-साथ कुशा का प्रयोग भी आवश्यक है. कुशा को पवित्र माना गया है क्योंकि इसकी जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और शीर्ष पर भगवान शिव का वास माना जाता है. इस कारण पितृ कर्म में कुशा का प्रयोग अनिवार्य है. हालांकि, पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्यों में भी इसका उपयोग किया जाता है.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें