अहमदाबाद: कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चौदस को काली चौदस कहा जाता है. जिसे नरक चौदस, भूत चौदस या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन काली माता, हनुमानजी, काल भैरव, शनिदेव, यमदेव और यंत्रों की पूजा का विशेष महत्व है. वास्तु विशेषज्ञ ने काली चौदस के धार्मिक महत्व और इस दिन पूजा करने के तरीकों के बारे में विस्तृत जानकारी दी.
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिषी और वास्तु विशेषज्ञ रविभाई जोशी ने Bharat.one बात करते हुए कहा कि काली चौदस का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. इस दिन बंगाली लोग महाकाली माता की विशेष पूजा करते हैं. कहा जाता है कि इस दिन को नरक चौदस भी कहा जाता है क्योंकि काली माता ने नरकासुर का वध किया था. केवल इतना ही नहीं, भगवान कृष्ण ने नरकासुर द्वारा बंदी बनाई गई 16,100 रानियों को मुक्त कर उन्हें विवाह किया.
काली चौदश के दिन अभ्यंग स्नान और पूजा के महत्व
- अभ्यंग स्नान का महत्व: काली चौदश के दिन सूर्योदय से पहले मिट्टी लगाकर स्नान करने से व्यक्ति हर बीमारी से मुक्त हो जाता है.
- जीव हत्या और तिल का तेल: इस दिन किसी भी जीव हत्या से बचना चाहिए. तिल का तेल दान करना आवश्यक है.
- झाड़ू पर पैर न रखें: इस दिन झाड़ू पर गलती से भी पैर नहीं रखना चाहिए.
- पूजा की तैयारी: देवी-देवताओं की पूजा से पहले तिल का तेल और चंदन का लेप लगाना चाहिए.
- दीप जलाना: सूर्योदय से पहले घर के बाहर तिल का तेल का दीप जलाना चाहिए. सूर्योदय के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें.
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काली चौदश की पूजा विधि
- पूज्य देवताओं का स्मरण: इस दिन महाकाली माता, हनुमानजी, काल भैरव और यम देव की पूजा की जानी चाहिए.
- दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाना: काली चौदश की शाम को घर के दरवाजे पर दक्षिण दिशा की ओर चौमुख दीप जलाकर सभी देवी-देवताओं की पूजा करें.
- दीप जलाने की प्रक्रिया: घर, कार्यालय या दुकान के बाहर एक तेल का दीप जलाएं.
- पूजा का फल: इस दिन और रात में की गई पूजा या साधना हजार गुना फल देती है.
- हनुमानजी की आराधना: काली चौदश की रात को, हनुमानजी के सामने लाल या केसरिया वस्त्र पहनकर बैठें और हनुमानजी का मंत्र जपें. इससे आपके काम में आने वाली बाधाएं, बीमारियां, खतरे या अन्य कठिनाइयां दूर होती हैं.
FIRST PUBLISHED : October 29, 2024, 18:36 IST
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