शुभम मरमट / उज्जैन: हिंदू धर्म में करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे पवित्र और भावनात्मक पर्व माना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुखी वैवाहिक जीवन और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं. यानी सुबह सूर्योदय से लेकर रात को चंद्रमा के दर्शन तक बिना पानी पीए व्रत निभाया जाता है.
वैदिक पंचांग के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है. तिथि की शुरुआत 9 अक्टूबर की रात 10:54 बजे से होगी और इसका समापन 10 अक्टूबर की शाम 7:38 बजे पर होगा.
क्यों की जाती है करवा चौथ पर चंद्र पूजा?
करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. माना जाता है कि चंद्रमा शांति, समृद्धि और मन की स्थिरता का प्रतीक है. उसकी पूजा करने से दांपत्य जीवन में प्रेम, विश्वास और संतुलन बढ़ता है. धार्मिक मान्यता है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने से पति की आयु लंबी होती है और विवाह में खुशहाली बनी रहती है. इसके साथ ही यह पूजा जल और पृथ्वी तत्वों का सम्मान भी दर्शाती है, जो जीवन के आधार माने जाते हैं.
इन बातों का जरूर रखें ध्यान नहीं तो निष्फल हो जाएगा व्रत!
पानी या अन्न ग्रहण न करें:
सूर्योदय के बाद से लेकर चंद्रोदय तक भूलकर भी पानी की एक बूंद या अन्न का एक दाना न खाएं. यदि गलती से ऐसा हो जाए तो तुरंत स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और भगवान शिव-पार्वती से क्षमा याचना करें.
नवविवाहित महिलाएं ध्यान दें:
अगर यह आपका पहला करवा चौथ है तो शादी का जोड़ा और सोलह श्रृंगार करना अनिवार्य है. इसके बिना पूजा करना या चंद्रमा को अर्घ्य देना व्रत को निष्फल कर देता है.
धारदार वस्तुओं का उपयोग न करें:
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन कैंची, सुई, चाकू जैसी वस्तुओं का उपयोग अशुभ माना जाता है. माना जाता है कि इससे व्रत का पुण्य फल कम हो जाता है. इसलिए सिलाई-कढ़ाई जैसे कार्यों से बचें.
काले कपड़े भूलकर भी न पहनें:
काला रंग नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. करवा चौथ के दिन लाल, गुलाबी, पीला, नारंगी या हरा जैसे शुभ रंग पहनना सौभाग्य और खुशहाली का प्रतीक है. इस पवित्र व्रत का पारण हमेशा पति के हाथों से ही किया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, विश्वास और आयु दोनों बढ़ते हैं.