भारत पर्व-त्योहारों की भूमि है. यहां हर साल कई त्योहार मनाए जाते हैं जो यहां के लोगों के उत्सवधर्मी होने का जीवंत उदाहरण है. करवा चौथ का पवित्र त्योहार इन्हीं से एक है. देशभर की सुहागिन महिलाएं इसे पूरी परंपरा के साथ मनाती हैं. इस व्रत में महिलाएं दिनभर निर्जला रहकर पति की लंबी उम्र की कामना करते हैं. शाम को पूरे विधि-विधान के साथ चांद का दर्शन करने के बाद पति का चेहरा देखती हैं. पति के हाथों से पानी पीकर इस व्रत को पूरा करती हैं. रीति-रिवाज के साथ व्रत को पूरा करने के बाद ही महिलाएं अन्न ग्रहण करती हैं.
करवा चौथ के दिन देश के विभिन्न हिस्सों में चांद अलग-अलग वक्त पर निकलता है. पौराणिक काल से यह मान्यता चली आ रही है कि पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान को लेने जब यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी ने यमराज से अपने पति बख्शने की प्रार्थना की. उन्होंने यमराज से कहा कि वह उनका सुहाग को वापस लौटा दें, मगर यमराज ने उसकी बात नहीं मानी. इस पर सावित्री अन्न जल त्यागकर अपने पति के मृत शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी. काफी समय तक सावित्री के हठ को देखकर यमराज को उस पर दया आ गई. यमराज ने उससे वर मांगने को कहा.
यमराज के ऐसा कहने पर सावित्री ने कई बच्चों की मां बनने का वर मांग लिया. सावित्री पतिव्रता नारी थीं और अपने पति के अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती थीं. ऐसे में यमराज को भी उसके आगे झुकना पड़ा और सत्यवान को जीवित कर दिया. कहा जाता है कि तभी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं सावित्री का अनुसरण करते हुए निर्जला व्रत करती हैं.
करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से देश के उत्तर और पश्चिम राज्यों की महिलाएं रखती हैं. ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही इन राज्यों के पुरुष सेना में काम करते आ रहे हैं और सेना में भर्ती होते रहे हैं. इनकी सलामती के लिए इन राज्यों की महिलाएं करवा चौथ का व्रत करती हैं, जिससे कि उनके पति की दुश्मनों से रक्षा हो सके और उनकी आयु लंबी हो. वहीं, जिस वक्त यह त्योहार मनाया जाता है उन दिनों में रबी की फसल यानी गेहूं की फसल बोई जाती है. कुछ स्थानों पर महिलाएं करवा में गेहूं भी भरकर रखती हैं और भगवान को अर्पित करती हैं, ताकि उनके घर में गेहूं की शानदार फसल पैदा हो. इस तरह करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है.