वाराणसी: माता लक्ष्मी को धन और ऐश्वर्य की देवी कहा जाता है. हर कोई माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए अलग-अलग पूजा और अनुष्ठान करते हैं. कोजागरी पूजा भी इनमें से है. हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को कोजागरी पूजा और व्रत किया जाता है. इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं.
काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि यह पूजा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. इस दिन रात्रि में जागरण और पूजा का महत्व है. कोजागरी का अर्थ है ‘कौन जाग रहा है’. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी रात्रि में धरती लोक पर भ्रमण करती है. यहां रात्रि में कौन जग के उनकी पूजा करता है उसपर देवी प्रसन्न होती है.
इन जगहों पर मनाया जाता है कोजागरी पूजा
ऐसा कहा जाता है इस कोजागरी पूजा से धन सम्बंधित सभी तरह की समस्याएं दूर होती है और इस पूजा को करने से भक्तों के घर अन्न और धन की कमी नहीं रहती है. यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल सहित अन्य जगहों पर मनाया जाता है. संजय उपाध्याय ने बताया कि इस दिन माता लक्ष्मी के किसी भी स्वरूप की पूजा की जा सकती है. इससे उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है.
इस दिन का है विशेष महत्व
धर्मशास्त्र के अनुसार,आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है.इस दिन को शरद पूर्णिमा,रास पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है और मध्यरात्रि में चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है.यही वजह है कि इस दिन खुले आसमान के नीचे चावल और दूध की खीर को रखा जाता है. जिसे अगले दिन प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है.
FIRST PUBLISHED : October 16, 2024, 07:22 IST
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