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Lalita Saptami 2025 muhurat puja vidhi mantra tripushkar yoga importance | त्रिपुष्कर योग में ललिता सप्तमी आज, पूजन से मिलेगा राधा-कृष्ण का आशीर्वाद, बढ़ेगी सुख-समृद्धि, जानें मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व


ललिता सप्तमी आज 30 अगस्त शनिवार को मनाई जा रही है. आज के दिन राधारानी की सखी ललिता की पूजा करते हैं. इससे राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. आज ललिता सप्तमी के दिन त्रिपुष्कर योग बना है. इस योग में आप जो भी शुभ कार्य करेंगे, उसका तीन गुना फल आपको प्राप्त होगा. ललिता सप्तमी की पूजा से व्यक्ति के सुख और समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है. आइए जानते हैं ललिता सप्तमी के मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.

ललिता सप्तमी मुहूर्त

भाद्रपद शुक्ल सप्तमी तिथि को ललिता सप्तमी मनाई जाती है. यह पावन पर्व राधा रानी की सबसे प्रिय और घनिष्ठ सखी ललिता देवी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, सप्तमी तिथि आज रात 10:46 पी एम तक है. उसके बाद से अष्टमी लग जाएगी.

ललिता सप्तमी पर ब्रह्म मुहूर्त 04:28 ए एम से 05:13 ए एम तक है, जबकि शुभ समय यानि अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:56 ए एम से दोपहर 12:47 पी एम तक है. राहुकाल का समय सुबह 9 बजकर 10 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 46 मिनट तक रहेगा. राहुकाल में पूजा पाठ या शुभ कार्य न करें.

त्रिपुष्कर योग में ललिता सप्तमी

इस साल ललिता सप्तमी पर त्रिपुष्कर योग बना है. त्रिपुष्कर योग सुबह में 05:58 ए एम से दोपहर 02:37 पी एम तक रहेगा. इस शुभ योग में ललिता सप्तमी की पूजा अत्यंत फलदायी है. इस योग के अलावा आज इन्द्र योग प्रात:काल से लेकर दोपहर 03:10 पी एम तक है, जबकि विशाखा नक्षत्र प्रात:काल से लेकर दोपहर 02:37 पी एम तक है. उसके बाद से अनुराधा नक्षत्र है.

ललिता सप्तमी पर स्वर्ग की भद्रा

ललिता सप्तमी के दिन भद्रा का प्रारंभ रात में होगा. भद्रा रात 10:46 पी एम से लेकर कल सुबह 05:59 ए एम तक रहेगी. इस भद्रा का वास स्वर्ग में है.

कौन हैं ललिता देवी?

ललिता सप्तमी व्रत मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन और आसपास के ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है. ललिता देवी राधा और कृष्ण की रासलीला और उनके प्रेम में एक महत्वपूर्ण सूत्रधार और अष्टसखियों में से एक थीं, जो राधारानी के हर सुख-दुःख में साथ रहती थीं.

ललिता सप्तमी पूजा विधि

व्रत रखने के लिए आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म, स्नान आदि करने के बाद पूजा स्थल को साफ करें. इसके बाद आसन बिछाएं, फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसमें राधा-कृष्ण और देवी ललिता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. अब व्रत का संकल्प लेने के बाद देवी ललिता को लाल रंग के वस्त्र, फूल, श्रृंगार सामग्री और मिठाई अर्पित करें. पूजा में तुलसी दल का उपयोग करना शुभ माना जाता है.

देवी ललिता की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद ‘ॐ ह्रीं ललितायै नमः’ मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है. इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण करें.

ललिता सप्तमी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ललिता देवी की पूजा करने से राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण दोनों प्रसन्न होते हैं. माना जाता है कि इस व्रत को करने से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, प्रेम और सौभाग्य आता है. यह व्रत विशेष रूप से नवविवाहित जोड़ों के लिए बेहद फलदायी माना जाता है. कहते हैं कि जो दंपत्ति श्रद्धापूर्वक ललिता देवी की पूजा करते हैं, उनका वैवाहिक जीवन प्रेम और सुख से भरा रहता है. कई स्थानों पर इस व्रत को संतान सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए भी यह व्रत रखा जाता है.

(एजेंसी इनपुट के साथ.)

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