Prem VS Vasna : आज के समय में जब समाज प्रेम और वासना के बीच की रेखा को धुंधला कर देता है, तब ऐसे फैसले लोगों को सोचने पर मजबूर करते हैं. प्रेम हमेशा दो आत्माओं का संगम होता है, जबकि वासना केवल शरीर का आकर्षण. सनातन दृष्टिकोण यह सिखाता है कि प्रेम में सम्मान और जिम्मेदारी होनी चाहिए. अगर उसमें मर्यादा है, तो वही प्रेम जीवन का आधार बनता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया. यह मामला एक युवा जोड़े का था, जिसमें लड़की नाबालिग थी और लड़के को पॉस्को एक्ट के तहत दस साल की सजा सुनाई गई थी. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह वासना का नहीं, प्रेम का मामला है. कोर्ट ने यह भी बताया कि दोनों अब शादीशुदा हैं और एक बच्चे के माता-पिता हैं. यह फैसला केवल कानून का निर्णय नहीं, बल्कि समाज के लिए एक नैतिक और भावनात्मक सबक है कि हर संबंध को केवल उम्र या कानून की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता.
भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि सनातन धर्म के अनुसार, प्रेम आत्मा का गुण है जबकि वासना मन की प्रवृत्ति. प्रेम वह शक्ति है जो आत्मा को ऊंचा उठाती है, जबकि वासना व्यक्ति को नीचे खींचती है. जब भावना में सम्मान, समर्पण और मर्यादा होती है, तब वह प्रेम कहलाती है. लेकिन जब वही भावना केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित हो जाती है, तो वह वासना बन जाती है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस अंतर को उजागर करता है जहां नीयत और भावना का महत्व समाज के नियमों से कहीं ऊपर है. यही सनातन विचारधारा की खूबसूरती है, जो मनुष्य को बाहरी नहीं बल्कि भीतरी सच्चाई से परखना सिखाती है.
सनातन धर्म हमेशा से मनुष्य के आचरण और भावनाओं को आत्मा की दृष्टि से देखता है. भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, “मैं वह काम हूं जो धर्म के अनुसार है.” यहां काम का अर्थ केवल इंद्रिय-सुख नहीं, बल्कि वह भावना है जो मर्यादा में रहकर प्रेम का रूप लेती है. यही धर्मसम्मत काम प्रेम कहलाता है, और जो मर्यादा से बाहर हो जाए, वह वासना बन जाता है.

रामायण का उदहारण
रामायण में इस भेद को बहुत सुंदर तरीके से दिखाया गया है. भगवान राम और माता सीता का संबंध त्याग, आदर और सच्चे प्रेम का प्रतीक है. राम का सीता के प्रति प्रेम केवल आकर्षण नहीं था, वह एक जिम्मेदारी, एक बंधन और आत्मिक जुड़ाव था. इसके विपरीत, रावण की भावना वासना से प्रेरित थी. उसने सीता को पाने की कोशिश की, लेकिन उसका उद्देश्य केवल अपने अहंकार और इच्छा की पूर्ति था. यही सनातन धर्म सिखाता है प्रेम में समर्पण होता है, वासना में स्वार्थ.
इंद्र का छल
इसी तरह इंद्र और अहल्या की कथा भी इस फर्क को दर्शाती है. इंद्र ने ब्रह्मर्षि गौतम की पत्नी अहल्या के साथ छल किया. यह कृत्य वासना से प्रेरित था, प्रेम से नहीं. परिणामस्वरूप, अहल्या को शाप मिला और इंद्र को अपमान का सामना करना पड़ा. यहां धर्म यह सिखाता है कि छल, प्रलोभन और स्वार्थ से उत्पन्न भावना कभी प्रेम नहीं कहलाती. प्रेम ईमानदारी और सच्चाई से जन्म लेता है, वासना धोखे से.
रामायाण का दूसरा उदहारण
रामायण में एक और उदाहरण मिलता है शूर्पणखा का. वह रावण की बहन थी जिसने राम से विवाह की इच्छा जताई. राम ने उसे सम्मान के साथ समझाया कि उनका मन सीता में है. यह घटना बताती है कि आकर्षण हर किसी के मन में उठ सकता है, लेकिन संयम ही व्यक्ति को मर्यादित बनाता है. शूर्पणखा का आकर्षण वासना से प्रेरित था, जबकि राम का व्यवहार प्रेम और मर्यादा का प्रतीक था.
भागवत पुराण के अनुसार
भागवत पुराण में राधा और कृष्ण के प्रेम को आत्मा और परमात्मा के मिलन के रूप में बताया गया है. यह प्रेम शुद्ध है, इसमें कोई शारीरिक इच्छा नहीं, केवल भक्ति और भावनात्मक समर्पण है. यही वह प्रेम है जो व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाता है, जबकि वासना उसे मोह और बंधन में डाल देती है.

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसले
अब जब हम सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को देखते हैं, तो समझ आता है कि हर प्रेम कहानी का मूल्य उसकी भावना से तय होता है. कोर्ट ने जब कहा कि “यह वासना का नहीं, प्यार का मामला है,” तो उसने यह स्वीकार किया कि नीयत और भावना का महत्व कानून की परिभाषा से बड़ा है. सनातन धर्म भी यही कहता है अगर भावना सच्ची है, किसी का शोषण नहीं करती, और उसमें त्याग है, तो वही प्रेम है.
प्रेम और वासना के बीच की रेखा
आज के समय में जब समाज प्रेम और वासना के बीच की रेखा को धुंधला कर रहा है, तो धर्म और न्याय दोनों हमें संयम और विवेक का संदेश देते हैं. प्रेम आत्मा का विकास करता है, वासना मन को बांध देती है. जो संबंध सम्मान और मर्यादा में बंधा हो, वही सच्चा प्रेम कहलाता है. यही शिक्षा सनातन धर्म बार-बार देता है प्रेम ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग है, वासना उस मार्ग की बाधा.







