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मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ का महत्व अत्यंत अद्भुत और प्राचीन है. इसे भारत के सबसे प्राचीन जीवित मंदिरों में गिना जाता है. देवी को यहां चतुर्भुजी महिषासुरमर्दिनी के रूप में विराजमान माना गया है. लोक आस्था के अनुसार, यहां बलि की परंपरा प्राचीन काल से रही लेकिन यहां बलि अलग तरह से दी जाती है. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में खास बातें…
Maa Mundeshwari Bhavani Shaktipeeth Temple: देशभर में कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपने चमत्कार और रहस्य के लिए प्रसिद्ध हैं. देश के कुछ हिस्सों में मां काली और मां के रौद्र रूपों पर पशु बलि देना शुरू हो जाता है, लेकिन बिहार में कैमूर जिले में स्थित 51 शक्तिपीठ में से एक मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ में अनोखे तरीके से बलि दी जाती है. इसकी खास बात ये है कि बिना खून बहाए इस प्रथा का निर्वहन किया जाता है. मान्यता है कि बलि देने से मां प्रसन्न होती है और मनोकामना को पूरा करती हैं. इसे भारत के सबसे प्राचीन जीवित मंदिरों में गिना जाता है और यहां देश-विदेश से लाखों भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में खास बातें…
मुंडेश्वरी भवानी शक्तिपीठ पंवरा पहाड़ी के शिखर पर बना है और पहाड़ से गुजरकर भक्त मां भवानी के दर्शन करने जाते हैं. इस मंदिर में सात्विक बलि परंपरा की प्रथा चलती आई है. यहां बकरे को मां भवानी के सामने रखा जाता है, फिर पंडित अक्षत और रोली से कुछ मंत्र पढ़कर बकरे पर पानी की छींटे मारते हैं, जिससे बकरा बेहोश होकर गिर जाता है. इसे ही मंदिर में बलि माना जाता है. कुछ देर बाद जब बकरा होश में आ जाता है तो उसे छोड़ दिया जाता है. मंदिर में बकरे या किसी भी पशु के साथ हिंसा नहीं की जाती.
इस तरह पड़ा मां का नाम मुंडेश्वरी
मां मुंडेश्वरी मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने के लिए नारियल और लाल चुनरी चढ़ाने की प्रथा है, लेकिन किसी मनोकामना के लिए पशु को बिना दर्द दिए माता के चरणों में समर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि मां ने राक्षस मुंड को मारने के लिए अवतार लिया और उसका वध किया, जिसकी वजह से भक्तों के बीच उन्हें मां मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि यह मंदिर 5वीं शताब्दी में बनाया गया था. मंदिर के प्रांगण से मां के दर्शन करने तक का सफर सीढ़ियों से होकर पूरा करना पड़ता है.
शिव-शक्ति का संगम है यह मंदिर
इसके अलावा मंदिर को मुगल इतिहास से भी जोड़ा गया है. कहा जाता है कि पहले ये मंदिर बहुत बड़ा था, लेकिन मुगलों के आक्रमण के बाद मंदिर का कुछ हिस्सा टूट गया. इस मंदिर में मां भगवती अकेली नहीं हैं, बल्कि मंदिर के गर्भ ग्रह में पंचमुखी शिव विराजमान हैं, यह स्थान शिव-शक्ति के संगम का प्रतीक है. मंदिर अष्टकोणीय आकार का है, जो भारत में अद्वितीय माना जाता है और इसमें नागर शैली की झलक देखने को मिलती है. इस मंदिर के शिलालेख और मूर्तियां गुप्तकालीन कला की झलक प्रस्तुत करते हैं.
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