Mahakumbh 2025: प्रयागराज में इस साल महाकुंभ लगाने जा रहा है. इस मौके पर संगम नगरी में कई साधु-संतों का जमावड़ा देखे को मिलता है. क्योंकि सनातन धर्म में इस पवित्र स्थल को यज्ञ, तप व तीर्थों की नगरी माना जाता है. वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रयागराज में कई मुनियों, देवी-देवताओं और ऋषि ने कठोर तप किया था. जिनमें दुर्वासा ऋषि का भी नाम शामिल है. ऋषि दुर्वासा को अपने क्रोध और श्राप के लिए जाना जाता है. लेकिन क्या आपको पता है ऋषि दुर्वासा के श्राप का महाकुंभ से एक नाता है? तो आइए पुराणों में मौजूद इस कथा को विस्तार से जानते हैं.
पुराणों में मौजूद के एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा की तपस्थली प्रयागराज के झूंसी में गंगा तट पर स्थित है. मान्यता है कि अपने क्रोध के कारण ही महर्षि दुर्वासा को प्रयागराज में शिव जी की तपस्या करनी पड़ी थी. तो आइए पंडित रमाकांत मिश्रा से जानते हैं कि आखिर समुद्र मंथन का महर्षि दुर्वासा के श्राप से क्या है संबंध
महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण हुआ समुद्र मंथन
पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन की कथा मौजूद है जिसका महाकुंभ के आयोजन से सीधा नाता है. इस कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र, महर्षि दुर्वासा द्वारा दी गई माला को अपने हाथी को पहना दिया था. इससे महर्षि दुर्वासा ने क्रोधित होकर देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया. इस बात से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास अपनी शक्तियां वापस पाने गए. इसपर भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी. समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिससे देवता अमर हो जाएंगे.
इसके बाद समुद्र मंथन किया गया लेकिन इस दौरान अनेक दिव्य वस्तुएं निकलीं, जिनमें से एक अमृत कलश भी था. इस अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया. इस युद्ध के दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिर गईं. मान्यता है कि ये बूंदें चार स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन है. इन्हीं स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरने के कारण इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और यहीं पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.
दुर्वासा ऋषि द्वारा स्थापित है शिवलिंग
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महान महान ऋषि दुर्वासा को विष्णु भक्त इक्ष्वाकु वंश के राजा अंबरीष ने श्राप दे दिया था. इस श्राप के कारण भगवान विष्णु का अत्यंत शक्तिशाली और खतरनाक अस्त्र, सुदर्शन चक्र, महर्षि दुर्वासा का पीछा करने लगा, जैसे उनकी हत्या को आतुर हो, इसपर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को सुझाव देते हुए कहा कि उन्हें प्रयागराज में संगम के तट से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करनी होगी. इसके बाद महर्षि दुर्वासा ने गंगा नदी के किनारे एक शिवलिंग स्थापित किया और भगवान शिव की तपस्या और पूजा शुरू कर दी.
उनकी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अभयदान दिया और उन्हें हर प्रकार के भय से मुक्त कर दिया. ऐसी मान्यता है कि महर्षि दुर्वासा द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की पूजा करने से भक्तों को भी भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के हर प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
FIRST PUBLISHED : December 30, 2024, 12:49 IST