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Maha Shivratri: Unique way of worshiping Shiva Gaura, this society of MP roams from village to village for four months, know the secret of Kathi dance related to Mahashivratri!


Agency:Bharat.one Madhya Pradesh

Last Updated:

Maha Shivratri 2025: खरगोन का एक सामज देव उठनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक एक अनोखी परंपरा को फॉलो करता है, जिससे शिव गौरा की आराधना की जाती है.

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काठी

काठी नृत्य करते भगत दीपक खेड़े एवं साथी.

हाइलाइट्स

  • खरगोन का काठी नृत्य शिव-गौरा की आराधना की अनूठी मिसाल है।
  • देव उठनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक गांव-गांव में काठी नृत्य होता है।
  • महाशिवरात्रि पर देवड़ा नदी में माता का श्रंगार विसर्जित किया जाता है।

खरगोन. जितनी मीठी निमाड़ की बोली है, उससे कहीं ज्यादा अनोखी यहां की लोक कलाएं और परंपराएं हैं. खरगोन की काठी नृत्य भी उन्हीं में से एक है. पुराने जमाने में जब लोगों के पास संसाधनों का अभाव था, तब यही लोक कलाएं उनके मनोरंजन का प्रमुख साधन हुआ करती थीं. खास बात ये है कि मनोरंजन के साथ यह लोक कलाएं लोगों को धर्म से जोड़ती थी, देवी देवताओं की आराधना की जाती थी, भक्ति भाव जाग्रत किया जाता था. लेकिन, समय के साथ धीरे-धीरे यह लोक कलाएं विलुप्त होने लगी है.

निमाड़ की चार प्रमुख लोक कलाओं में से एक काठी नृत्य भगवान शिव और माता गौरा की आराधना की अनूठी मिसाल है. देव उठनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक चार महीने इस कला से जुड़े कलाकार (भगत) गांव-गांव जाकर लोगों में आज भी ना सिर्फ भक्ति का भाव जगाने का काम कर रहे हैं, बल्कि इसे जीवित रखने के लिए भी प्रयासरत हैं. मुख्यतः बलाई समाज के लोग इस कला को अपनी पूर्वजों की धरोहर मानकर संजोए हुए हैं.

भोलेनाथ ने की थी शुरुआत
बताया जाता है कि, निमाड़ में काठी नृत्य की यह विधा भगवान शंकर और माता गौरा से जुड़ी है, जिसकी शुरुआत भोलेनाथ द्वारा की थी. इस विधा से जुड़े भगत देव उठनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक बांस से सजी सोलह श्रंगार रहित काठी लेकर गांव-गांव में जाकर निमाड़ी गीत गाकर अनोखा नृत्य करते हैं. महिलाएं काठी माता की पूजा करके भगत को दान में अनाज और राशि भेंट करती हैं. इसी से भगत सालभर परिवार का पालन पोषण करते हैं.

अनोखी वेषभूषा, गीत और नृत्य
लोक कला से जुड़े 50 वर्षों के अनुभवी गोगावा के राजाराम सिटोले, धरगांव के मन्नालाल सिटोले एवं 30 वर्षों के अनुभवी कसरावद के दीपक खेड़े, जो इन दिनों काठी नृत्य से लोगों में भक्ति जगा रहे हैं और लोगों की इसका समझा रहें. Bharat.one से बातचीत में बताते है कि, बांस की काठी को सोलह श्रृंगार करके माता गौरा का रूप देते हैं. इसमें चार लोग शामिल रहते हैं. दो भगत होते है, जो लाल चटकदार रंग पारंपरिक वेशभूषा और पगड़ी में कलगी, मृगशाला धारण करके निमाड़ी गीत गाकर काठी नृत्य करते हैं. एक व्यक्ति डुगडुरी (डमरू) बजाता है. चौथा व्यक्ति मां गौर को साथ लेकर चलता है.

महाशिवरात्रि पर होगा समापन
भगत बताते है कि, जब किसी के घर जाते है तो पहले गणेश वंदना और फिर शिव के गीत गाए जाते हैं. उन्हीं गीतों के जरिए भगवान की भक्ति होती है. यह सिलसिला इसी तरह चार महीनों तक चलता है. महाशिवरात्रि के दिन पंचमढ़ी से करीब 15 KM दूर देवड़ा नदी में माता का पूरा श्रंगार विसर्जित करने के बाद समापन होता है.  यहां विसर्जन से पहले बड़ा महादेव में शिव के दर्शन से पहले उनके दो भगतों के दर्शन भी होते हैं.

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Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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