Mahabharat Katha: सत्य की विजय और अधर्म के विनाश को दिखाने वाली महर्षी वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत (Mahabharat) की कहानी, भारतीय धर्म, सभ्यता और संस्कृति की एक अनूठी गाधा है. इस कहानी में कई ऐसे पात्र आपको मिलते हैं, जो अपने पराक्रम, धैर्य और अपने शौर्य के लिए जाने जाते हैं. लेकिन महाभारत में जितने अहम पुरुष पात्र हैं, उतने ही दमदार और शौर्य से भरपूर महिला किरदार भी हैं. द्रौपदी, कुंती, गांधारी जैसे कई महिला पात्र महाभारत की इस महाकथा में आपको नजर आते हैं. लेकिन आज हम आपको इस कथा के एक ऐसे महिला पात्र की कथा बताने जा रहे हैं, जिसकी एक शर्त ने हस्तिनापुर और कुरु वंश के भाग्य को ही बदल कर रख दिया. यही वो शर्त है, जिसने ‘अजेय’ भीष्म को अपनी ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ लेने पर मजबूर किया और हमेशा-हमेशा के लिए उन्हें अपने ही राज्य के सिंहासन का सेवक बना दिया. ये महिला है मत्सगंधा जिसे आगे चलकर सत्यवति के नाम से जाना गया. जिसकी शर्त ने ही भीष्म को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने पर बाध्य किया.
कौन थे हस्तिनापुर के युवराज भीष्म?
दरअसल सत्यवति एक मत्स कन्या थी और उसमें से हमेशा मछली जैसी गंध आती थी. इसलिए उसका नाम मत्सगंधा था. मत्सगंधा पर ऋषि पाराशर मोहित हो गए थे, और उन्हीं के वरदान से वह अत्यंत सुगंधित स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई थी. वहीं आर्यावर्त के राजा शांतनु का पहला विवाह गंगा से हुआ था. गंगा ने राजा के सामने ये शर्त रखी थी कि वह कभी उनसे किसी तरह का कोई सवाल नहीं पूछेंगे. विवाह के बाद शांतनु और गंगा के 7 पुत्र हुए जिन्हें एक-एक कर गंगा ने नदी में बहा दिया. पर वचनबद्ध राजा कभी कुछ न कह पाए. जब आठवां पुत्र हुआ और उसे गंगा नदि में बहाने गईं, तो राजा से रहा नहीं गया और उन्होंने गंगा को रोक दिया. गंगा ने पुत्र को तो नहीं बहाया लेकिन वचन टूटने पर पुत्र को समय आने पर लौटाने का वादा कर चली गईं. राजा शांतनु और गंगा का ये पुत्र ही देवव्रत था, जिसे आगे चलकर ‘भीष्म’ के नाम से जाना गया. भीष्म महाबलशाली और श्रेष्ठ योद्धा थे. उनके आने से हस्तिनापुर के नए राजा की चिंता टल गई थी.
महाभारत की रचना महर्षी वेद व्यास ने की थी. (Photo – AI)
गंगा के जाने के बाद राजा शांतनु वन में आखेट के लिए गए. इस सुंदर वन में उन्हें एक परम सुंदर युवती नजर आई, जिसपर वह आसक्त हो गए. क्योंकि उसके शरीर से बड़ी मनभावनी सुगंध निकल रही थी. राजा ने कहा तुम मुझसे शादी करोगी, तो इस युवती ने कहा ‘मैं केवट पुत्री सत्यवती हूं. आपसे विवाह करना सौभाग्य की बात है. पर मेरी शर्त है कि मेरी संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी बने.’ राजा शांतनु जानते थे कि भीष्म बड़ा पुत्र है और वह राजा बनने के योग्य है. राजा शांतनु ये शर्त सुन वापस आ गए. पर वह वापस आकर बेचैन से रहने लगे. भीष्म के पूछने पर राजा ने बात टाल दी लेकिन एक मंत्री ने उन्हें सारा सच और इस शर्त के बारे में बताया दिया कि राजा एक केवटराज की पुत्री से विवाह करना चाहते हैं, लेकिन उसकी शर्त है कि उसकी संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी बने, जो राजा को स्वीकार नहीं.
जब भीष्म ने सत्यवती के लिए भीष्म प्रतिज्ञा
देवव्रत यानी भीष्म अपने पिता को उदास नहीं देखना चाहते थे. वो सत्यवती के पिता केवटराज यहां पहुंचे और बोले, ‘मैं राजा शांतनु का पुत्र हूं. मैं राज्य के उत्तराधिकार से स्वयं को वंचित करता हूं. अब आप अपनी पुत्री का विवाह राजा से करा दें.’ लेकिन केवटराज और भी चतुर निकला. उसने कहा, ‘आपकी बात ठीक है, पर आपकी संतान अगर राज्य पर अपना अधिकार जताना चाहे तो मेरी पुत्री की संतान का क्या होगा?’ ये सुनते ही भीष्म ने वो भीषण प्रतिज्ञा ले डाली, जिसके बाद उनका नाम भीष्म पड़ा. देवव्रत ने कहा, ‘मैं प्रतिज्ञा करता हूं, आज से आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगा.’ एक नवयुवक की ऐसी विकट प्रतिज्ञा ने सभी को हैरान कर दिया. ऐसी भीषण प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम ‘भीष्म’ हो गया. स्वर्ग के देवता भी उनकी इस भीषण प्रतिज्ञा के आगे नतमस्तक हो गए थे.
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पिता की इच्छा के लिए भीष्म ने राज सिंहासन त्याग दिया. (Photo- AI)
सत्यवती के वंशजों ने लड़ा ‘महाभारत’
अपनी पिता की दूसरी पत्नी और माता सत्यवती के इसी वजन की वजह से भीष्म कभी राजा नहीं बने और आर्याव्रत का शासन सत्यवती के दो पुत्रों चित्रांगद और विचित्रवीर्य के पास गया. चित्रांगद बड़ा था इसलिए वह शांतनु का उत्तराधिकारी बना, लेकिन एक गंधर्व राजा से युद्ध करते हुए चित्रांगद मारा गया. उसके संतान नहीं थी, इसलिए चित्रांगद के बाद राजगद्दी पर उसके भाई विचित्रवीर्य को बिठाया गया. इसी विचित्रवीर्य का विवाह काशी नरेश की पुत्रियों अंबिका और अंबालिका से हुआ जिनकी संतानों के बीच आगे चलकर ‘महाभारत’ हुई.
FIRST PUBLISHED : September 20, 2024, 06:15 IST