महाभारत में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनके बारे में सोचकर आप हैरत में पड़ जाएंगे. गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा 7 चिरंजीवी में से एक है. महाभारत के युद्ध में वह अपने पिता के साथ कौरवों के पक्ष से लड़ा. उसे भी धनुर्विद्या में महारत हासिल थी. उससे भी दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था. एक समय ऐसा आया कि उसने अर्जुन पर एक ऐसे दिव्य अस्त्र का प्रयोग किया, जो ब्रह्मास्त्र से भी 4 गुना ताकतवर था. उसे ब्रह्मशिरा अस्त्र कहा जाता है. लेकिन उस अस्त्र के प्रयोग के परिणाम स्वरूप उसे श्राप का भागी बनना पड़ा, जिसकी वजह से आज भी वह दर-दर भटक रहा है. आइए जानते हैं ब्रह्मशिरा अस्त्र और अश्वत्थामा को मिले श्राप के बारे में.
जब अश्वत्थामा ने पांडवों के 5 पुत्रों के काटे सिर
बात उस समय की है, जब अश्वत्थामा को अपने पिता द्रोणाचार्य के वध सूचना मिली. वह पांडवों पर अत्यधिक क्रोधित हुआ और उनके समूल नाश का प्रण लिया. वह रात्रि के समय में पांडवों के शिविर में घुसा और उनके कई महारथियों को मार डाला. इतना ही नहीं, उसने पांडवों के 5 पुत्रों के सिर काट डाले. सुबह जब अर्जुन ने यह दृश्य देखा तो अश्वत्थामा का सिर काटने का वचन लिया.
अश्वत्थामा ने अर्जुन पर चलाया ब्रह्मशिरा अस्त्र
अश्वत्थामा को अर्जुन के प्रण के बारे में पता चला तो वह वेद व्यास जी के आश्रम में जाकर छिप जाता है. वहां पर अजुर्न भगवान श्रीकृष्ण के साथ पहुंचते हैं. उन दोनों को देखकर अश्वत्थामा विचलित हो जाता है और एक कुश को मत्रोच्चार करके अर्जुन पर छोड़ देता है जो देखते ही देखते ब्रह्मशिरा अस्त्र में बदल जाता है. इस पर अर्जुन भी पर ब्रह्मास्त्र चला देते हैं.
ब्रह्मशिरा अस्त्र ब्रह्मास्त्र से भी ताकतवर माना जाता है. ब्रह्मास्त्र में ब्रह्मा जी का एक मुख होता है, जबकि ब्रह्मशिरा अस्त्र में ब्रह्मा जी के 4 मुख होते हैं. वेद व्यास जी यह देखकर घबरा जाते हैं. वे दोनों अस्त्रों के टकराने के बाद होने वाली भयंकर तबाही के बारे में सोचते हैं. तत्त्काल ही अश्वत्थामा और अर्जुन को अपने अस्त्र वापस लेने को कहते हैं.
अश्वत्थामा को नहीं था दिव्यास्त्र वापस लेने का ज्ञान
अर्जुन को ब्रह्मास्त्र को वापस लाने का ज्ञान था, उन्होंने अपने ब्रह्मास्त्र को वापस ले लिया. लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेने की विद्या का ज्ञान नहीं था. उसने कहा कि वह दिव्यास्त्र को वापस नहीं ले सकता.
अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर किया प्रहार
इसके बाद अश्वत्थामा उस दिव्यास्त्र से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर प्रहार करता है. इसे देखकर भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन हैरान रह जाते हैं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा की क्योंकि उत्तरा को यह वरदान था कि उसे परिक्षित नामक पुत्र होगा. जो आगे चलकर एक बड़ा राजा बनेगा.
अश्वत्थामा को मिला दर-दर भटकने का श्राप
अश्वत्थामा के इस अपराध से भगवान श्रीकृष्ण इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम इतने लोगों के वध की आत्म ग्लानि होगी, जिसके कष्ट को हजारों वर्षों तक दर-दर भटकते हुए भोगोगे. इतना ही नहीं, तुम्हारे शरीर से खून की दुर्गंध आती रहेगी. तुम अनेकों रोगों से पीड़ित रहोगे. कहा जाता है कि इस श्राप के कारण कलियुग में भी अश्वत्थामा है, जो 7 चिरंजीवी में शामिल है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
FIRST PUBLISHED : January 2, 2025, 11:14 IST