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Mahabharat Katha: गांधारी ने दुर्योधन को अजेय बनाने के लिए आंखों की पट्टी हटाई. श्रीकृष्ण ने उसे कपड़े पहनने के लिए उकसाया, जिससे कमर ढकी रह गई. गांधारी का आशीर्वाद शरीर के खुले हिस्सों तक ही सीमित रह गया.

गांधारी ने अपनी आंखों से क्यों हटाई पट्टी
हाइलाइट्स
- गांधारी ने दुर्योधन को अजेय बनाने के लिए पट्टी हटाई.
- श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को कपड़े पहनने के लिए उकसाया.
- भीम ने दुर्योधन की जांघों पर गदा से प्रहार किया.
Mahabharat Katha: कुरुक्षेत्र का युद्ध इतिहास का सबसे भयानक युद्ध माना जाता है. ये हमें जीवन के मूल सिद्धांत भी सिखाता है. जैसे-जैसे कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने आखिरी चरण में पहुंचा, कौरवों की मां गांधारी ने अपने बेटे दुर्योधन की रक्षा के लिए अपनी दिव्य शक्ति का उपयोग करने का निश्चय किया. गांधारी ने अपने पति धृतराष्ट्र की तरह विवाह के बाद से ही आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, ताकि वह उनके दुख को बांट सकें. वर्षों के तप और संयम से उन्होंने अपार आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर ली थी.
गांधारी ने दुर्योधन को बिना कपड़ों के बुलाया
गांधारी जानती थीं कि अगर वह अपनी आंखों से दुर्योधन को देख लेंगी, तो उनका आशीर्वाद उसे अजेय बना सकता है. इसलिए उन्होंने दुर्योधन से कहा कि वह रात को बिना कपड़ों के उनके पास आए, ताकि वे पहली बार अपनी आंखों की पट्टी हटाकर उसे देख सकें और अपनी सारी शक्ति उसके शरीर में उतार सकें.
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श्रीकृष्ण ने विफल की योजना
श्रीकृष्ण को गांधारी के इस इरादे की भनक लग गई. उन्होंने एक योजना बनाई जिससे दुर्योधन की रक्षा पूरी न हो पाए और पांडव युद्ध जीत सकें. जब दुर्योधन अपनी मां से मिलने जा रहा था, तभी श्रीकृष्ण रास्ते में उससे टकरा गए. उन्होंने बातों-बातों में दुर्योधन से कहा, “राजकुमार होकर बिना कपड़ों के घूमना ठीक नहीं है. अगर किसी ने देख लिया तो बदनामी हो सकती है.”
जब गांधारी ने पट्टी हटाई
दुर्योधन को श्रीकृष्ण की बात लग गई और वह अपनी लज्जा के कारण कमर के नीचे केले के पत्ते से ढककर अपनी मां के पास पहुंचा. गांधारी ने जैसे ही अपनी पट्टी हटाई और दुर्योधन को देखा, उनका आशीर्वाद केवल उसके उन अंगों पर ही असर कर सका जो खुले थे. उसकी जांघ और कमर, जो केले के पत्तों से ढकी थी, उस पर उनका आशीर्वाद नहीं लग सका और वह हिस्सा कमजोर रह गया.
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श्रीकृष्ण ने भीम को उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाई
युद्ध के अंतिम दिन, श्रीकृष्ण समझ जाते हैं कि अगर भीम नियमों का पालन करता रहा तो वह दुर्योधन को नहीं हरा पाएगा. इसलिए वह अर्जुन से कहते हैं कि वह भीम को उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाए. दरअसल, भीम ने कसम खाई थी कि वह दुर्योधन की जांघ तोड़ेगा, क्योंकि दुर्योधन ने द्रौपदी को अपनी जांघ पर बैठने को कहा था. श्रीकृष्ण के इशारे पर भीम ने दुर्योधन की जांघों पर गदा से प्रहार किया और यही उसकी हार का कारण बना. इस प्रकार पांडवों की विजय निश्चित हुई. इस तरह श्रीकृष्ण की समझदारी और गांधारी के आशीर्वाद की अधूरी रक्षा, दोनों मिलकर दुर्योधन के पतन का कारण बने.