महर्षि पराशर, जो दिव्य और अलौकिक शक्तियों से संपन्न माने जाते थे, ने धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वास्तुकला, आयुर्वेद, और नीतिशास्त्र जैसे विषयों में अत्यधिक ज्ञान का प्रसार किया. उनके रचित ग्रंथ जैसे वृहत् पराशर होराशास्त्र, पराशर धर्म संहिता, पराशर महापुराण, और पराशर संहिता आज भी मानव समाज के लिए उपयोगी और प्रासंगिक माने जाते हैं.
पैगोड़ा शैली में बना पराशर मंदिर
मंडी जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित पराशर ऋषि का यह मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है. यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना हुआ है, और इसकी निर्माण प्रक्रिया की कहानी अत्यंत दिलचस्प है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक बालक ने किया था, और इसे बनाने के लिए केवल एक देवदार के पेड़ का इस्तेमाल हुआ था. इसे पूरा करने में सिर्फ 12 दिन लगे थे. इतिहास के अनुसार, एक दैविक शक्ति वाली मकड़ी लकड़ी पर अपना जाला बनाती थी, और बालक उस जाले को कला के रूप में उकेरता था. इसी प्रक्रिया से मंदिर का निर्माण हुआ.
श्रद्धालुओं के लिए खास आकर्षण
पराशर झील के किनारे बने इस मंदिर को लेकर लोगों की गहरी आस्था है. यहां पर गर्मियों के मौसम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, क्योंकि इस समय मंदिर तक पहुंचना सुगम होता है. सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर तक वाहनों से पहुंचना मुश्किल होता है, लेकिन लोग 12 किलोमीटर का पैदल ट्रैक कर यहां आते हैं. इस मंदिर का वातावरण शांति से भरपूर होता है, जो ऋषि पराशर के ध्यान और तपस्या के अनुकूल माना जाता है.
मौसम की अनिश्चितता
यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर स्थित है कि यहां का मौसम कभी भी पूर्वानुमान के अनुसार नहीं चलता. अचानक बारिश हो सकती है, और धुंध से मंदिर अक्सर ढका रहता है. मंदिर के शांत वातावरण और बदलते मौसम की विशेषता इसे और भी दिव्य बनाती है. यह स्थान उन ऋषियों और तपस्वियों के लिए एकदम उपयुक्त है, जो एकांत और शांति की खोज में होते हैं.
FIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 15:39 IST
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