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Menstrual Cycle in Navratri : नवरात्रि के दौरान मासिक धर्म होने पर महिलाएं मानसिक रूप से पूजा कर सकती हैं. पहले चार दिन पूजा से दूर रहें, पांचवें दिन से शामिल हो सकती हैं. पूजा स्थल पर जाना वर्जित है.

नवरात्रि में मासिक धर्म के दौरान व्रत और पूजा के नियम
हाइलाइट्स
- मासिक धर्म के पहले चार दिन पूजा से दूर रहें.
- पांचवें दिन से महिलाएं पूजा में शामिल हो सकती हैं.
- मासिक धर्म के दौरान पूजा स्थल पर जाना वर्जित है.
Menstrual Cycle in Navratri : मासिक धर्म एक साधारण शारीरिक प्रक्रिया है. यह किसी भी महिला को कभी भी हो सकता है. ऐसे तो इसका दिन लगभग निश्चित रहता है लेकिन कभी-कभी यह शारीरिक व्यवस्थाओं के चलते कुछ आगे या पीछे भी हो सकता है. नवरात्रि के बीच में यदि कोई महिला मासिक धर्म या पीरियड से हो जाती है तो वह असमंजस में पड़ जाती है कि उसके व्रत या कन्या पूजन कैसे होगा.
नवरात्रि में जो लोग व्रत करते हैं उन्हें साफ सफाई का बहुत ही कड़ाई से पालन करना चाहिए. लेकिन कभी-कभी महिलाओं को बीच नवरात्रि में ही मासिक धर्म शुरू हो जाता है. ऐसी महिलाओं के लिए कन्या पूजन और हवन आदि के लिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ नियम बताए गए हैं. आइये जानते हैं इन नियमों के बारे में.
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- यदि किसी महिला को पीरियड हो जाता है तो पहले से चौथे दिन तक अपने पति अथवा किसी ब्राह्मण से वह हवन अथवा कन्या पूजन करवा सकती है. शास्त्रों में बताया गया है कि यदि कोई पहल अशुद्ध अथवा मासिक धर्म की अवस्था में है तो वह मानसिक रूप से पूजा करें ऐसी स्थिति में व्रत का पूर्ण फल आपको मिलता है. मानसिक रूप से पूजन करने या व्रत करने में कोई भी रोक-टोक नहीं है.
- यदि महिलाओं को बीच नवरात्रि मासिक धर्म होता है तो चार दिनों तक उन्हें पूजा नहीं करनी चाहिए पांचवें दिन से महिला पूजा में शामिल हो सकती है.
- जो महिलाएं पीरियड में होती है उन महिलाओं को माता का भोग या उनकी साफ सफाई आदि नहीं करनी चाहिए ऐसी महिलाओं का पूजा स्थल पर जाना पूर्ण रूप से वर्जित होता है. साथ ही इन महिलाओं को पूजा से संबंधित किसी भी सामग्री को नहीं छूना चाहिए.
- यदि महिला चार दिन से अधिक भी मासिक धर्म में रहती है तो इन महिलाओं को कन्या पूजन और हवन नहीं करना चाहिए. इन्हें यह सब अपने पति अथवा किसी अन्य पारिवारिक सदस्य से कर लेना चाहिए.
यदि विशेष परिस्थितियों में घर में कोई भी मौजूद नहीं है जिससे आप पूजन कर सके तो ऐसी महिलाओं को अष्टमी अथवा नवमी की तिथि के बजाय पूर्णमासी में कन्यापूजन और हवन आदि करना चाहिए.