रीवा. बसामन मामा मंदिर मध्य प्रदेश के रीवा जिले के शांत परिदृश्य के बीच स्थित है. यह ऐतिहासिक भव्यता के साथ-साथ आध्यात्मिक भक्ति को भी दर्शाता है. यह मंदिर अपने रहस्यमय आकर्षण और स्थापत्य कला की भव्यता के कारण सदियों से निवासियों और पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है. ऐसा माना जाता है कि इसकी स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी.
लोकदेवता बसामन मामा ने लगभग 8वीं शताब्दी से पहले इसी भूमि में पर्यावरण की रक्षा के लिए आत्म बलिदान दिया था. लोक मान्यता के अनुसार यहां पर पीपल के एक वृक्ष को अनाथ बालक ने अपना पिता और उसके नीचे स्थित चबूतरे को अपना आश्रय स्थल बना रखा था. इस वृक्ष की रक्षा के लिए हमेंशा तत्पर रहने वाले बसामन मामा इस अंचल में लोकप्रिय हुये. कहा जाता है कि उन्होंने साधना कर कुछ सिद्धियां प्राप्त की थी जिससे दूर दूर तक उनके प्रति लोक आस्था थी.
जानिए क्या है कहानी
एक बार राजा के सैनिकों ने अपने पड़ाव में शामिल हाँथियों के खाने के लिए उस पीपल के वृक्ष को काटने की चेष्टा की जिसका प्रतिरोध बसामन मामा ने किया. तत्कालीन राजा ने इसे अपना अपमान समझ कर बसामन मामा को दण्डित करने का निश्चय लिया, जिसके लिए उन्होंने ने उस पीपल के वृक्ष को काटने की कुचेष्टा करके बसामन मामा को अपमानित किया. तब बसामन मामा ने अपनी सिद्धियों से उस पेड़ को बचाये रखने के लिए सैनिकों से मुकाबला किया. लेकिन राजा के एक षड़यंत्र के तहत जब बसामन मामा विवाह करने के लिए अपने ससुराल गए उसी रात राजा ने पीपल के उस वृक्ष को जड़ मूल से नष्ट करवा दिया. अगली सुबह बसामन मामा जब दूल्हे के रूप में वापस लौटे तो कटे हुए पीपल के वृक्ष देख कर क्रोध अग्नि में जलने लगे और राजा को इस हत्या के लिए श्राप देते हुए अपनी ही कटार से आत्माहुति दे दी.
बसामन को मामा प्रणाम कह दिया
बसामन मामा के सिद्धियों के तेज से राजा का विनाश हो गया था. राजा की एक रानी मायके में थी और वंश नाश की सूचना पर महल लौट रही थी रोते हुए उसी समय उसकी मुलाकात बीच रास्ते में घायल बसामन से हुई. रानी के पांच वर्ष के बालक ने बसामन को मामा प्रणाम कह दिया. जिससे बसामन का कलेजा पसीज गया और आंसू भरे नेत्र से उस वालक को जीवन दान दिया. स्वंम मामा के नाम से अंतर्ध्यान हो गए.
इस घटना के बाद उन्हें बसामन से बसामन मामा की ख्याति मिली. इसी कटे पीपल के वृक्ष के नीचे उनकी समाधि है. जिसको स्थानीय लोग पूजते हैं. लोक मान्यता है कि इस सुरम्य वन अंचल के पर्यावरण संरक्षण में बसामन मामा की प्रेरणा और कृपा बनी हुई है.
FIRST PUBLISHED : September 15, 2024, 16:59 IST
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