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Nadi Dosh in Kundali: शादी से पहले ऐसे चेक करें नाड़ी दोष, अगर नहीं देखा तो शादी हो सकती है असफल, जानें आसान उपाय


Nadi Dosh: गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 8 अंक प्राप्त होते हैं, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत. किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 में से 0 अंक प्राप्त होते हैं तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है. नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति में तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनों की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू में से किसी एक या दोनों की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है.

नाड़ी दोष के प्रतिकूल प्रभाव इस दोष की गहनता के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं. आमतौर पर होने वाले नकारात्मक प्रभावों में से कुछ इस प्रकार हैंः

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  1. परेशानी और समस्याग्रस्त वैवाहिक जीवन.
  2. स्वास्थ्य संबंधी समस्या.
  3. दम्पति के बीच कोई प्यार या आकर्षण नहीं होना.
  4. कमजोर या विकलांग बच्चों का जन्म
  5. बांझपन की संभावना
    नाडी दोष क्या है?

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, नाडियों के तीन प्रकार हैं : शादी करने वाले जोड़े के लिए, उनकी कुंडली या जन्म कुंडली में नाडियां अलग-अलग होनी चाहिए. उनकी कुंडली में एक ही प्रकार की नाडियां होना नाड़ी दोष का कारण बनती हैं, जिससे दांपत्य जीवन में परेशानी आ सकती है. ज्योतिष विद्वान कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर ऐसे लड़के तथा लड़की का विवाह करने से मना कर देते हैं. गुण मिलान की प्रक्रिया में आठ कूटों का मिलान किया जाता है जिसके कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है. ये अष्ट कूट हैं, वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी. इस लेख में हम नाड़ी के बारे में विस्तार से जान रहे हैं.

हमारे ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती हैं. ये हैं- आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी. नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी तथा अन्त्य नाड़ी. प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है. नक्षत्र संख्या में कुल 27 होते हैं तथा इनमें से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों में चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है. तीन नाड़ियों में आने वाले नक्षत्र इस तरह हैं.

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1- ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी में की जाती है.

2- पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी में की जाती है.

3- स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, अश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों के नक्षत्र एक नाड़ी में हों तब यह दोष लगता है. सभी दोषों में नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है. इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाती है.

आचार्य वराहमिहिर के अनुसार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक संबंध अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमें अलगाव हो जाता है. अगर कुण्डली मिलने पर कन्या और वर दोनों की कुंडली में मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनों की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम में अगर वर वधू दोनों की कुंडली में अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनों का जीवन दु:खमय होता है. इन स्थितियों से बचने के लिए ही तीनों समान नाड़ियों में विवाह की आज्ञा नहीं दी जाती है.

महर्षि वशिष्ठ के अनुसार नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रों में नजदीक होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है. आयुर्वेद के अन्तर्गत आदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियों को वात, पित्त एवं कफ की संज्ञा दी गई है.

नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करती है. मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते हैं.

1.यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनों के चरण पृथक हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है.

2. यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्ना हों तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है.

3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्ना-भिन्ना हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है.

नाड़ी दोष का उपचार : पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्नादान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राण-प्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है.

महत्वपूर्ण है नाड़ी मिलान : आप सभी ज्योतिषाचार्य यह भली भांति जानते हैं की कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की प्रक्रिया में बनने वाले दोषों में से नाड़ी दोष को सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि कुंडली मिलान में नाड़ी दोष के बनने से बहुत निर्धनता होना, संतान न होना तथा वर अथवा वधू दोनों में से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी मुसीबतें भी आ सकतीं है.

नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियों में निरस्त माना जाता है:

  1. यदि वर-वधू दोनों का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणों में हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता.
  2. यदि वर-वधू दोनों की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता.
  3. यदि वर-वधू दोनों का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता.

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