Last Updated:
Namaz in Islam : इस्लाम में नमाज़ को ईमान की पहचान और बंदगी का सबसे अहम स्तंभ बताया गया है. हर मुसलमान पर दिन में पांच वक्त की नमाज़ फर्ज की गई है. अक्सर सवाल उठता है कि क्या घर पर नमाज़ अदा कर सकते हैं या इसे मस्जिद में जमात के साथ पढ़ना जरूरी है? आइये मौलाना से जानते हैं कि दोनों में सबसे जरूरी क्या है.

इस्लाम में 5 फर्ज मे से एक नमाज को ईमान की बुनियाद और बंदगी की सबसे अहम इबादत बताया गया है. यह वह अमल है जो मुसलमान को दिन में पांच बार अपने रब से जोड़ता है और उसके दिल में ताज़गी, सुकून और सच्चाई का एहसास भर देता है. कुरान और हदीस में नमाज़ को एक फर्ज इबादत बताया गया. लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के ज़ेहन में आता है कि क्या नमाज़ घर में पढ़ी जा सकती है या मस्जिद में जाकर जमात के साथ अदा करना ज़रूरी है?

इस बारे में इस्लामिक स्कॉलर मौलाना उमेर खान ने बताया कि नमाज़ का मकसद सिर्फ सजदे में झुकना नहीं बल्कि एकता, भाईचारे और अल्लाह के हुक्म का पालन करना भी है. मस्जिद में जमात के साथ नमाज़ पढ़ने से न सिर्फ सवाब बढ़ जाता है बल्कि उम्मत में आपसी मोहब्बत और एकजुटता भी पैदा होती है.

मौलाना उमेर खान के अनुसार, ईद की नमाज़ वाजिब है और इसे सिर्फ ईदगाह या बड़ी मस्जिदों में ही जमात के साथ अदा किया जा सकता है. यह नमाज़ अकेले घर में नहीं पढ़ी जाती. अगर किसी से यह नमाज़ छूट जाए, तो उसकी क़ज़ा भी नहीं होती. इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि ईद के दिन हर हाल में जमात के साथ नमाज़ अदा करें, ताकि उस इबादत का पूरा सवाब हासिल हो सके.

आम दिनों की पांच वक्त की नमाज़ें, जैसे फज्र, जुहर, असर, मगरिब और ईशा घर में भी अदा की जा सकती हैं, लेकिन इस्लाम में बेहतर और अफ़ज़ल यही बताया गया है कि इन्हें मस्जिद में जमात के साथ अदा किया जाए. जमात में नमाज़ पढ़ने का सवाब अकेले पढ़ने से 27 गुना ज़्यादा बताया गया है. अगर किसी मजबूरी या बीमारी की वजह से कोई मस्जिद नहीं जा सकता, तो वह घर पर नमाज़ पढ़ सकता है.

मौलाना ने जुमे की नमाज़ के बारे में खास तौर पर बताया कि यह नमाज़ घर पर अदा नहीं की जा सकती. इसके लिए मस्जिद में जाकर ही जमात के साथ नमाज़ पढ़नी होती है. अगर कोई किसी वजह से जुमे की नमाज़ मस्जिद में नहीं पढ़ पाया, तो वह घर पर जुहर की नमाज़ पढ़ सकता है, लेकिन उसे जुमे का सवाब नहीं मिलेगा.

अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश मस्जिद नहीं जा पा रहा, तो वह घर पर भी चार-पांच लोगों के साथ मिलकर जमात बना सकता है. इससे भी सवाब मिलता है और इबादत का मकसद पूरा होता है. मगर जो मुसलमान तंदरुस्त हैं, उनके लिए मस्जिद में नमाज़ अदा करना ही बेहतर और पसंदीदा अमल बताया गया है.

नमाज़ को सिर्फ एक फर्ज समझकर नहीं बल्कि एक रूहानी सुकून के तौर पर अपनाना चाहिए. मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से दिलों में मोहब्बत बढ़ती है, समाज में भाईचारा कायम रहता है और इंसान अपने रब के और करीब होता है. इसलिए हर मुसलमान को कोशिश करनी चाहिए कि वह मस्जिद में जाकर ही नमाज़ अदा करे और अगर कभी मजबूरी हो, तो घर में इख़लास के साथ नमाज़ पढ़े.

 
                                    
