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Navratri 2024 :टिहरी राजवंश की कुलदेवी पर 7 पर्दों का पहरा, भक्त नहीं कर सकते मूर्ति के दर्शन! जानें कारण


श्रीनगर गढ़वाल. उत्तराखंड में कई पौराणिक मंदिर हैं, लेकिन टिहरी गढ़वाल के रानीहाट में स्थित राजराजेश्वरी मंदिर की विशेष महत्व है. जब गढ़वाल के राजा ने श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया, लगभग उसी दौरान टिहरी नरेश कनकपाल ने रानीहाट में कुलदेवी राजराजेश्वरी मंदिर की स्थापना की. इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी का माना जाता है. जितना पौराणिक यह मंदिर है, उतनी ही अद्भुत इसकी वास्तुशैली है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए भक्त दूर-दूर के क्षेत्रों से आते हैं.

राजराजेश्वरी मंदिर के पुजारी शंभू प्रसाद जोशी ने Bharat.one को बताया कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी में टिहरी नरेश पंवार वंश के पहले राजा कनकपाल द्वारा बनवाया गया था. इसके बाद राजपरिवार ने इस मंदिर की जिम्मेदारी जोशी ब्राह्मणों को सौंप दी.

इस कारण दर्शन है वर्जित
शंभू प्रसाद जोशी बताते हैं कि इस मंदिर में मां राजराजेश्वरी स्वयं विराजमान हैं, लेकिन मां राजराजेश्वरी की मूर्ति के दर्शन वर्जित हैं. भक्तों को माता की मूर्ति के दर्शन नहीं होते, क्योंकि इसे 7 पर्दों के पीछे रखा गया है ताकि कोई मूर्ति के दर्शन न कर सके. यहां तक कि मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी को भी मूर्ति के दर्शन की अनुमति नहीं है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पर्दे के पीछे मां राजराजेश्वरी और भोलेनाथ की विशालकाय मूर्ति है, जिसमें मां राजराजेश्वरी पद्मासन में भोलेनाथ की नाभि में बैठी हुई हैं. इस कारण मूर्ति के दर्शन वर्जित हैं.

बदहाल हुआ मां राजराजेश्वरी का यह मंदिर
इतना पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर होने के बावजूद, मां राजराजेश्वरी का यह मंदिर बदहाली का दंश झेल रहा है. देखरेख न होने के चलते मंदिर कई जगहों से खंडित हो रहा है. मंदिर के पुजारी शंभू प्रसाद जोशी का कहना है कि जब से यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन आया है, तब से इसकी स्थिति बिगड़ती जा रही है. स्थानीय लोग मंदिर से संबंधित कार्य करना चाहते हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग उन्हें भी काम करने की अनुमति नहीं देता.

अपनों के बीच बेगानी हुई कुलदेवी
पुजारी शंभू प्रसाद जोशी आगे बताते हैं कि मां राजराजेश्वरी टिहरी राजवंश की कुलदेवी हैं, लेकिन कोई भी राजपरिवार का सदस्य मंदिर की सुध लेने नहीं आता. राजपरिवार द्वारा केवल आस-पास की भूमि का निरीक्षण किया जाता है, यह देखने के लिए कि राजपरिवार की कितनी भूमि है, लेकिन मंदिर की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. ऐसा लगता है मानो मां अपने ही घर में बेगानी हो गई हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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