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Faridabad News: नवरात्रि की नवमी पर कन्या पूजन में पांच से सात साल की नौ कन्याओं को माता का प्रतीक मानकर पूजन किया जाता है. इस दौरान लंगूर को भैरव जी का प्रतिनिधि बैठाया जाता है.
फरीदाबाद: नवरात्रि के नौवें दिन यानी नवमी को देशभर में विशेष रूप से कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है. इस दिन नौ कन्याओं का पूजन कर उनके चरण धोए जाते हैं और उन्हें देवी का प्रतीक मानकर सम्मान दिया जाता है. फरीदाबाद के महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य ने Local18 से बातचीत में इस पूजा की परंपरा और उसके पीछे छिपे धार्मिक महत्व को विस्तार से समझाया.
महंत स्वामी के अनुसार माता के नौ रूप होते हैं जिन्हें लोग अलग-अलग दिनों में पूजते हैं. कुछ लोग अष्टमी को पूजन करते हैं तो कुछ नवमी को. इन नौ रूपों में पांच से सात वर्ष की कन्याओं को देवी का रूप माना जाता है. इसलिए नवमी के दिन पांच से सात साल की नौ कन्याओं को माता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है. उनकी सेवा करते हुए उनके चरण धोए जाते हैं और उन्हें विधिपूर्वक भोजन, वस्त्र और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं.
कन्या पूजन में बिठाया है एक छोटा बालक
इसके साथ ही कन्या पूजन में एक छोटा लड़का या बालक भी बैठाया जाता है जिसे लंगूर के रूप में माना जाता है. इस लंगूर का महत्व यह है कि वह माता के रक्षक यानी भैरव जी का प्रतीक होता है. महंत स्वामी ने बताया कि माता के मंदिर के पास हमेशा भैरव जी का छोटा सा मंदिर भी होता है. भैरव जी का सौम्य रूप माता के पास पहरेदार के रूप में विराजते हैं. काशी में काल भैरव की परंपरा आज भी जीवित है. वहां के थानों में पुलिस चौकियों पर भैरव जी की तस्वीर रखी जाती है जो वहां के रक्षक का प्रतीक है.
भैरव जी का प्रतिनिधि होता है बालक
नवरात्रि के दौरान जब नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है तो लंगूर को उनके बीच बैठाया जाता है. इस बालक की उम्र दस से बारह वर्ष के बीच होनी चाहिए और इसे भैरव जी का प्रतिनिधि माना जाता है. कभी-कभी दो बालक बैठाए जाते हैं जिनमें से एक भैरव जी और दूसरा गणेश जी का प्रतीक माना जाता है. भैरव जी का यह सौम्य रूप माता की रक्षा के लिए उनके पास स्थायी रूप से विराजित रहता है.
क्या है मान्यता
महंत स्वामी ने यह भी बताया कि भगवान शिव ने भैरव जी को माता की सुरक्षा के लिए प्रकट किया था. इसीलिए नवमी के दिन कन्याओं के साथ लंगूर का बैठना धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह परंपरा न केवल माता के सम्मान को दर्शाती है, बल्कि उनकी सुरक्षा और संरक्षण का प्रतीक भी है.
नवमी का महत्व
नवरात्रि का यह पर्व इसलिए भी खास है, क्योंकि इसमें माता के नौ रूपों के साथ भैरव जी की उपस्थिति हमें यह याद दिलाती है कि शक्ति और सुरक्षा हमेशा साथ चलती हैं. इस दिन का आयोजन श्रद्धा, भक्ति और धार्मिकता का संदेश देता है जो हर भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और विश्वास भरता है. नवमी के दिन कन्या पूजन में लंगूर का बैठना केवल एक परंपरा नहीं बल्कि माता की सुरक्षा भैरव जी की भूमिका और धार्मिक आस्था का जीवंत प्रतीक है.