देवघर: जब भी पितृपक्ष आते हैं, तब एक सवाल बार-बार लोगों के सामने सिर उठाता है. क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान कर सकती हैं या नहीं? ये दिक्कत उन घरों में ज्यादा आती है, जहां ज्येष्ठ पुत्र या कोई पुरुष न हो या घर का पुरुष सदस्य कहीं दूर रहता हो. आमतौर पर तर्पण, श्राद्ध आदि का कार्य घर के पुरुष ही करते हैं. लेकिन, ऐसे किसी पूर्वज का श्राद्ध कैसे हो, जिसके पुत्र ही न रहा हो. क्या ऐसी स्थिति में घर की महिलाएं श्राद्ध, तर्पण आदि कर सकती हैं? देवघर के ज्योतिषाचार्य से यहां जानिए…
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने Bharat.one को बताया कि इस साल 17 सितंबर पूर्णिमा तिथि के साथ ही पितृपक्ष की शुरुआत होने वाली है. माना जाता है कि पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं. उनको वंशजों से मनपसंद भोजन और सम्मान की आशा होती है. यदि इस दौरान पितृ प्रसन्न हो गए तो वंश वृद्धि, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर लौटते हैं. पितृ पक्ष में ज्यादातर पुरुष ही पितरों का तर्पण करते हैं, लेकिन जिस घर में पुरुष न हो वहां हर बार दिक्कत आती है.
तब क्या करें…
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि जिस व्यक्ति के पुत्र ही न हो या फिर उस घर में कोई भी पुरुष न हो तो ऐसी अवस्था में घर की महिलाएं भी श्राद्ध, तर्पण आदि कर सकती हैं. क्योंकि, पितृपक्ष के दौरान किसी भी परिस्थिति में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान इत्यादि रोकना शुभ नहीं माना जाता है. इसलिए घर की अकेली महिला भी पितरों का तर्पण, श्राद्ध इत्यादि कर सकती है.
माता सीता ने भी किया था पिंडदान
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण में कथा है, जिसके अनुसार जब माता सीता भगवान राम फल्गु नदी के किनारे राजा दशरथ के पिंडदान करने के लिए पहुंचे तो कुछ सामान लाने भगवान राम नगर चले गए. माता सीता फल्गु नदी के किनारे अकेली बैठी थी. उधर, पिंडदान का मुहूर्त निकला जा रहा था. तभी राजा दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग की. माता सीता असमंजस में पड़ गईं. माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर पिंडदान किया था.
FIRST PUBLISHED : September 9, 2024, 15:59 IST
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