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Pitru Paksha 2025: हरिद्वार में पितृपक्ष के दौरान अपने पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध करना बेहद महत्वपूर्ण है. इस दौरान तुलसी का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है ताकि पितृ प्रसन्न हों और सभी मनोकामनाएं पूरी हों….और पढ़ें
हरिद्वार: वैदिक पंचांग के अनुसार साल भर में होने वाली अमावस्या और पितृपक्ष के दिनों में अपने पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध करने से जीवन में चल रही सभी समस्याएं समाप्त होती हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है. पितृपक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है. इन 16 दिनों के पितृपक्ष में सभी पितरों और पूर्वजों का सम्मान करने और उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण, हवन और यज्ञ आदि करने का विधान है.
हरिद्वार के विद्वान धर्माचार्य पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि पितृपक्ष में तुलसी का प्रयोग श्राद्ध में विशेष महत्व रखता है. यदि तुलसी का उपयोग श्राद्ध में नहीं किया जाता तो पितृ नाराज होकर अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं.
पितृपक्ष में तुलसी का महत्व
पंडित श्रीधर शास्त्री के अनुसार, श्राद्ध पक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक होता है. इस दौरान ज्ञात और अज्ञात सभी पूर्वजों, पितरों का श्राद्ध किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पितरों का श्राद्ध पवित्रता और श्रद्धा-भक्ति भाव से करने पर ही लाभ देता है.
पंडित श्रीधर शास्त्री के अनुसार, श्राद्ध पक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक होता है. इस दौरान ज्ञात और अज्ञात सभी पूर्वजों, पितरों का श्राद्ध किया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पितरों का श्राद्ध पवित्रता और श्रद्धा-भक्ति भाव से करने पर ही लाभ देता है.
श्राद्ध में पवित्रता बनाए रखने के लिए तुलसी दल का प्रयोग किया जाता है. श्राद्ध करते समय ग्रास निकालने और भोजन आदि कार्यों में तुलसी को शामिल किया जाता है, जिससे सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और श्राद्ध का कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होता है.
साल 2025 में पितृपक्ष की तिथियां
साल 2025 में पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर, रविवार से होगी और यह 21 सितंबर, भाद्रपद की अमावस्या तक चलेगा. इस दौरान सभी ज्ञात और अज्ञात पूर्वजों, पितरों और सन्यासी पितरों का श्राद्ध श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता के साथ किया जाएगा. तुलसी के प्रयोग से पितृ प्रसन्न होंगे और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देकर अपने लोक लौटेंगे.
साल 2025 में पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर, रविवार से होगी और यह 21 सितंबर, भाद्रपद की अमावस्या तक चलेगा. इस दौरान सभी ज्ञात और अज्ञात पूर्वजों, पितरों और सन्यासी पितरों का श्राद्ध श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता के साथ किया जाएगा. तुलसी के प्रयोग से पितृ प्रसन्न होंगे और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देकर अपने लोक लौटेंगे.
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