यहां गिरा था देवी सती का दाहिना पैर
किंवदंती है कि यह मंदिर वह स्थान है, जहां देवी सती के दाहिने पैर का एक भाग गिरा था. श्री विद्या परंपरा में मां त्रिपुर सुंदरी, जिन्हें षोडशी और ललिता भी कहा जाता है, को सर्वोच्च देवी और तीनों लोकों में सबसे सुंदर के रूप में पूजा जाता है. इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने वर्ष 1501 ई. में कराया था. माना जाता है कि 15वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में त्रिपुरा पर शासन करने वाले राजा को एक रात स्वप्न में देवी त्रिपुरेश्वरी ने दर्शन दिए और उन्हें राज्य की तत्कालीन राजधानी उदयपुर के निकट एक पहाड़ी की चोटी पर अपनी पूजा आरंभ करने का निर्देश दिया.

शक्ति देवी के साथ विष्णुजी की पूजा
बाद में बार-बार इसी प्रकार के स्वप्न आने पर महाराजा ने मंदिर में त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति स्थापित की. यह ऐतिहासिक मंदिर एक अनूठी आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है, जो हिंदू धर्म के वैष्णव और शाक्त संप्रदायों को जोड़ता है और विविधता में एकता का प्रतीक है. यहां भगवान विष्णु की पूजा शालग्राम शिला या काले रंग की शिला के रूप में की जाती है. काली मंदिर या किसी शक्तिपीठ में शक्ति देवी के साथ विष्णु की पूजा का ऐसा उदाहरण न सिर्फ दुर्लभ है, बल्कि इस मंदिर की एक अनूठी विशेषता भी है. यह शिव और शक्ति के मिलन का एक दिव्य स्थल भी है, जो विश्व में कहीं और नहीं मिलता.
यहां देवी शक्ति की पूजा मां त्रिपुरसुंदरी के रूप में की जाती है और उनके साथ स्थित भैरव को त्रिपुरेश कहा जाता है. मंदिर में चौकोर आकार का गर्भगृह है, जिसे विशिष्ट बंगाली एक-रत्न शैली में डिजाइन किया गया है, जो एक छोटी पहाड़ी पर स्थापित है, जो कछुए (कूर्म) के कूबड़ जैसा दिखता है, जिससे इसे कूर्म पीठ का नाम मिला है. मूर्ति के पैरों के नीचे एक श्री यंत्र उत्कीर्ण है. यह श्री यंत्र कोई साधारण डिजाइन नहीं है, बल्कि एक रहस्यमय जियोमेट्रिक मंडल है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड व पुरुष और स्त्री ऊर्जाओं के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस श्री यंत्र के दर्शन या पूजा कई शुभ अनुष्ठान करने के बराबर है, जो भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक आशीर्वाद प्रदान करता है.
माता को प्रिय है यह फूल
5 फीट ऊंची बड़ी और प्रमुख मूर्ति देवी त्रिपुर सुंदरी की है. एक छोटी मूर्ति है, जिसे छोटो-मां या देवी चंडी के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि छोटी मूर्ति को त्रिपुरा के राजा युद्ध के मैदान और शिकार अभियानों में ले जाते थे. लोक कथाओं के अनुसार, देवी की वर्तमान मूर्ति वास्तव में माताबाड़ी के पास ब्रह्मछारा के जल में डूबी हुई पाई गई थी. स्थानीय परंपराओं में देवी को अर्पित किए जाने वाले लाल गुड़हल के फूल को बहुत सम्मान दिया जाता है और आम प्रसाद में पेड़ा मिठाई शामिल है.
हाल ही में मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले माताबाड़ी पेड़ा को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्रदान किया गया है. हर साल देशभर से लाखों भक्त दीपावली मेले के लिए यहां एकत्रित होते हैं. दो दिवसीय मेला एक आधिकारिक आयोजन है. देश भर से भागीदारी के साथ माताबाड़ी में दीपावली मेला सिर्फ एक मेला ही नहीं है, बल्कि त्रिपुरा के बहु-सांस्कृतिक ताने-बाने का चित्रण भी है. मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण के लिए प्रसाद योजना के अंतर्गत एक प्रमुख परियोजना शुरू की गई. इस परियोजना में मंदिर परिसर में सुधार, संगमरमर का फर्श और नए रास्ते, पुनर्निर्मित प्रवेश द्वार और बाड़, उचित जल निकासी, पेड़ा स्टॉल, ध्यान कक्ष, अतिथि आवास, कार्यालय कक्ष, पेयजल जैसी सुविधाओं से युक्त एक नया तीन मंजिला परिसर शामिल है.

यह पुनर्विकास सिर्फ एक मंदिर के बारे में नहीं है, बल्कि उदयपुर को एक धार्मिक-पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने के बारे में है. त्रिपुरा सरकार का लक्ष्य त्रिपुरा सुंदरी मंदिर को आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बनाना है, जो होटल, परिवहन, हस्तशिल्प बिक्री और स्थानीय खाद्य व्यवसायों को भी बढ़ावा देगा. इससे हर साल लाखों अतिरिक्त पर्यटकों के आने का अनुमान है, जिससे जिले की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. हर साल, देश भर और पड़ोसी देश बांग्लादेश से 12-15 लाख से अधिक लोग मंदिर में आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. यह परियोजना तीर्थयात्रियों और आने वाले पर्यटकों के हित में बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करती है. माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में कछुए की पूजा एक पवित्र पशु के रूप में की जाती है. मंदिर का पूरा डिजाइन कछुए के आकार का है.
मंदिर परिसर के विकास परियोजना को मंजूरी
भारत सरकार ने 2021 में प्रसाद योजना के तहत माता त्रिपुरा सुंदरी मंदिर परिसर के विकास परियोजना को मंजूरी दी. बाद में परियोजना में कुछ संशोधन किए गए. इस परियोजना की लागत 54.04 करोड़ रुपए है, जिसका वित्तपोषण केंद्र सरकार की प्रसाद योजना (34.43 करोड़ रुपए) और राज्य योजना (17.61 करोड़ रुपए) के तहत किया गया है. वर्तमान में माताबाड़ी में हर दिन लगभग तीन से साढ़े तीन हजार तीर्थयात्री आते हैं. उम्मीद है कि परियोजना पूरी होने के बाद, दैनिक आगमन दोगुना होकर लगभग 5,000-7,000 व्यक्तियों तक पहुंच जाएगा. यह परियोजना स्थानीय समुदायों, होटलों, गाइडों, टैक्सी मालिकों और अन्य हितधारकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करेगी.