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Pradosh Vrat: 9 अप्रैल नहीं, इस दिन रखा जाएगा चैत्र माह का अंतिम प्रदोष व्रत, आचार्य से जानें शिव पूजा का महत्व


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Pradosh Vrat April Date: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है. आइए उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से जानते है. इस व्रत के बारे में विस्तार से….और पढ़ें

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प्रदोष

प्रदोष व्रत 

हाइलाइट्स

  • पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को रखा जाएगा.
  • प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है.
  • गुरु प्रदोष व्रत से मनचाही इच्छा पूरी होती है.

प्रदोष व्रत 2025. हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है. इस खास दिन पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव की कृपा से सुख-समृद्धि और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है. दरअसल, एक महीने में 2 बार प्रदोष व्रत किया जाता है. इस दिन सुबह से लेकर शाम तक व्रत किया जाता है और भगवान शिव समेत उनके पूरे परिवार की आराधना की जाती है. साथ ही, विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है. आइए जानते हैं उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से अप्रैल के पहला और चैत्र मास का अंतिम प्रदोष व्रत कब आ रहा है. और इसका क्या धार्मिक महत्व है.

जानिए कब रखा जाएगा प्रदोष व्रत 
वैदिक पंचांग के अनुसार, अप्रैल माह का पहला प्रदोष व्रत यानि चैत्र माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 9 अप्रैल को रात 10 बजकर 55 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन 11 अप्रैल को रात 10 बजे होगा. त्रयोदशी तिथि के दिन पूजन प्रदोष काल में किया जाता है. ऐसे में पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को रखा जाएगा.

जानिए क्या गुरु प्रदोष का धार्मिक महत्व 
गुरु प्रदोष व्रत रखने से मनचाही इच्छा पूरी होती है. इस दिन संतान संबंधी किसी भी मनोकामना की पूर्ति की जा सकती है. गुरु प्रदोष व्रत रखने से शत्रु और विरोधी शांत होते हैं. मुकदमों और विवादों में विजय मिलती है. भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं. लेकिन गुरु प्रदोष व्रत में शिव की आराधना के कुछ विशेष नियम.

जरूर करें इन नियमों का पालन
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद सूर्य देव को अर्घ देकर व्रत का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करके भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें. इसके बाद शिव परिवार का पूजन करें और भगवान शिव पर बेल पत्र, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें. फिर प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें. पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और शिव चालीसा का पाठ जरूर करें. इसके बाद ही अपना उपवास खोलें.

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