भगवान राम ने वैकुंठ गमन की आज्ञा अपने गुरु वशिष्ठ से ली.उसके बाद सभी पर्रिकर सहीत भगवान सरयू जी में प्रवेश कर गए.
Bhagwan Ram Ki Jal Samadhi : ये बात तो हम सभी जानते हैं कि भगवान ना तो जन्म ले सकते हैं और नाही उनकी मृत्यु होती है, वे तो केवल अपनी लीला करने के लिए इस भूमि में प्रकट होते हैं और लीला समाप्ति पर वापस बैकुण्ठ पधारते हैं. रामायण में भगवान राम के जीवन की घटनाएं और उनके बलिदान के बारे में विस्तार से उल्लेख है. उन घटनाओं में से एक महत्वपूर्ण घटना है जब भगवान राम ने सरयू नदी में जल समाधि ली. इस घटना से उनके महान बलिदान और निष्कलंक व्यक्तित्व को समझा जा सकता है. तो आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से उस पीड़ादायक घटना को जब भगवान राम ने बैकुण्ठ गमन के लिए सरयू जी में जल समाधी ली.
पहली कथा के अनुसार
जब माता सीता ने पवित्रता की परीक्षा देने के बाद भी भगवान श्री राम से त्याग किए जाने की पीड़ा सहन की थी, तब उन्होंने अपने दो पुत्रों लव और कुश को भगवान राम के पास भेज दिया. इसके बाद, माता सीता ने धरती में समाने का निर्णय लिया. भगवान राम इस दुख को सहन नहीं कर पाए और यमराज की अनुमति से उन्होंने सरयू नदी के गुप्तार घाट में जल समाधि ले ली. इस घटना से भगवान राम के अंदर गहरी तपस्या और आत्मसमर्पण की भावना झलकती है.
एक अन्य कथा के अनुसार
भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के वियोग में भी जल समाधि ली. इस कथा में यमराज एक संत के रूप में अयोध्या में पहुंचे और श्री राम से गुप्त वार्ता करने के लिए कहा. लक्ष्मण, जो भगवान राम के आदेश का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध थे, ऋषि दुर्वासा को कक्ष में प्रवेश नहीं करने देते हैं. लेकिन ऋषि के क्रोध के बाद लक्ष्मण ने अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें अंदर आने की अनुमति दी, जिससे भगवान राम का वचन टूट गया. इस कारण भगवान राम ने लक्ष्मण को राज्य से निष्कासित कर दिया, और लक्ष्मण ने सरयू नदी में जल समाधि ली. इसके बाद भगवान राम भी दुखी हो गए और उन्होंने भी जल समाधि लेने का निर्णय किया. इन घटनाओं से यह सिद्ध होता है कि श्री राम का जीवन त्याग, बलिदान और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा से भरा हुआ था. उनका जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है.
भगवान राम ने ली महर्षि वशिष्ठ से आज्ञा
रामावतार की सभी लीलाओं को समाप्त करने के बाद भगवान राम बैकुण्ठ वापस जाने की आज्ञा लेने अपने कुलगुरू महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे और गुरुदेव ने उन्हें आज्ञा प्रदान की. उसी समय सभी अयोध्यावासी वहा पहुंचे और भगवान राम से उनके साथ बैकुण्ठ जाने की विनती करने लगे, उन्होंने कहा अगर राम उन्हें साथ लेकर नहीं जाएंगे तो वह सब उसी क्षण अपने प्राण त्याग देंगे. यह बात सुन महर्षि वशिष्ठ बोले, “यह प्रजा कोई साधारण प्रजा नहीं बल्कि आपके अपने लोग हैं, इनमे से कितने ही देवताओं के पुत्र हैं, कितने ही तेजस्वी यक्ष, गन्धर्व, किन्नर आदि है जो ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आपकी इस लीला को पूर्ण करने धरती पर मनुष्य रूप में प्रकटे हैं, तो अब आप इनकी इच्छा पूर्ण करिए प्रभु…”
भगवान ने बनाया चतुर्भुज रूप
यह सुन भगवान राम ने उन सब को साथ जाने की आज्ञा दी, जिससे समस्त प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई. अब भगवान राम समस्त परिकर सहित सरयू जी के तट पर पहुंचे. उसके बाद जैसे ही भगवान राम ने सरयू जी में प्रवेश किया तभी ब्रह्मा जी ने प्रकट हो भगवान को अपने चतुर्भुज रूप में आने के लिए कहा जिसका दर्शन कर वहां मौजूद सभी लोग लाभान्वित हुए और उसी क्षण भगवान श्रीहरि के वाहन गरुण वहां आ पहुंचे तथा भगवान उसपर विराजमान हुए.
सभी को दिया इच्छापूर्ति का वरदान
इसके बाद भगवान ने विभीषण को लंका पर धर्मपूर्वक राज्य करने का आदेश दिया और हनुमान जी को उनके इच्छा अनुसार धरती पर रहकर हरिनाम संकीर्तन करते रहने की आज्ञा दी. जामवंत जी को द्वापरयुग के अंत तक धरती पर रहने को कहा और सुग्रीव को उनकी इच्छानुसार अपने साथ चलने का वरदान दिया.
बताया नाम संकीर्तन का महत्व
भगवान ने ब्रह्मा जी को समस्त दिव्य प्रजा को भी उत्तम लोक प्रदान करने का आदेश दिया जिसके बाद भगवान श्रीहरि समस्त परिकर सहित बैकुण्ठ को पधारे. भगवान ने जाते जाते कलयुग में नाम संकीर्तन का मंत्र भी दिया जिससे सुलभता से भगवद प्राप्ति होगी.
FIRST PUBLISHED : January 1, 2025, 13:31 IST