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ravan ke 10 sir kiska pratik hai। रावण के 10 सिरों का मतलब


Ravan 10 Heads: हर साल जब दशहरा आता है, तो पूरे देश में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है. यह परंपरा केवल राम की जीत का उत्सव नहीं है, बल्कि रावण की उन बुराइयों को मिटाने का प्रतीक है जो समाज और व्यक्ति दोनों के लिए हानिकारक हैं. इस बार दशहरा 2 अक्तूबर 2025 को मनाया जाएगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रावण के 10 सिरों का मतलब क्या है? क्या वे सिर्फ ताकत का संकेत हैं या उनके पीछे कोई गहरा अर्थ छिपा है? धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण कोई साधारण राक्षस नहीं था. वह विद्वान था, उसे वेद-पुराणों का ज्ञान था, लेकिन उसका अंत हुआ क्योंकि वह अपने अंदर की बुराइयों को नहीं छोड़ पाया. उसके 10 सिर सिर्फ उसके ज्ञान या बल के प्रतीक नहीं थे, बल्कि वे उन 10 कमजोरियों का संकेत थे जो हर इंसान के अंदर भी पाई जाती हैं. आइए जानते हैं, भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से रावण के इन 10 सिरों का क्या मतलब है और वे किन बुराइयों को दिखाते हैं.

1. काम (वासनात्मक इच्छा)
रावण का पहला सिर अनियंत्रित इच्छाओं का प्रतीक है. उसने सीता का अपहरण किया क्योंकि वह अपनी इच्छा को रोक नहीं पाया. यही उसकी सबसे बड़ी भूल बनी.

2. क्रोध (गुस्सा)
दूसरा सिर क्रोध का प्रतीक है. रावण अक्सर बिना सोचे-समझे क्रोधित हो जाता था और उसी गुस्से में फैसले लेता था, जो अंत में उसके खिलाफ गए.

3. लोभ (लालच)
तीसरा सिर लालच का प्रतीक है. उसे हर चीज़ चाहिए थी – सत्ता, शक्ति, सम्मान – और वो किसी भी हद तक जाने को तैयार था.

4. मोह (आसक्ति)
रावण अपने वैभव, परिवार और लंका से इतना जुड़ गया था कि उसे सही-गलत की समझ नहीं रह गई थी.

5. अहंकार (घमंड)
उसका पांचवां सिर उसके अहंकार का संकेत देता है. उसे लगता था कि उससे बड़ा कोई नहीं है, और यही घमंड उसकी हार का कारण बना.

6. मद (शान पर घमंड)
मद यानी अपनी उपलब्धियों और शोहरत पर जरूरत से ज़्यादा घमंड. रावण को अपने ज्ञान और शक्ति पर गर्व था, जो अंत में उसके पतन में बदल गया.

7. ईर्ष्या (जलन)
रावण दूसरों की अच्छाइयों और सफलता से जलता था. यही ईर्ष्या उसे कई बार गलत रास्ते पर ले गई.

8. भय (डर)
आठवां सिर डर का प्रतीक है – खोने का डर, हार जाने का डर. रावण बाहर से शक्तिशाली दिखता था लेकिन अंदर से डरा हुआ था.

9. द्वेष (नफरत)
रावण दूसरों से बदला लेने की भावना रखता था. वह क्षमा करने की बजाय नफरत पालता था.

10. असत्य (झूठ और भ्रम)
आखिरी सिर असत्य का प्रतीक है. रावण ने कई बार सच को नज़रअंदाज़ किया और झूठ का साथ दिया.

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