Last Updated:
Samastipur Chhath Puja: समस्तीपुर में छठ पूजा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया, लोकगीतों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से माहौल भक्तिमय और बिहार की एकता का प्रतीक बना.

चार दिवसीय लोक आस्था के सबसे पवित्र पर्व छठ पूजा का तीसरा दिन समस्तीपुर जिले में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुआ. हर नदी, तालाब और पोखर पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा. संध्या बेला में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के समय घाटों पर लोकगीतों की मधुर गूंज, सजाई गई प्रसाद की थालियाँ और श्रद्धा से भरे चेहरे इस पर्व को दिव्यता प्रदान कर रहे थे. तीसरे दिन की यह संध्या सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, जब व्रती महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने परिवार, संतान और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.

विद्यापतिनगर प्रखंड के शिवगंगा पोखर पर आज का दृश्य किसी आध्यात्मिक मेले से कम नहीं था. दूर-दूर से आए छठ व्रतियों ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना की और जैसे ही सूर्य धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ा, श्रद्धालुओं ने अर्घ्य जल अर्पित किया. हर ओर लोकगीतों की मिठास और बच्चों की खुशी के स्वर गूंज रहे थे. महिलाओं के सिर पर दौरा और हाथों में कलश देखकर ऐसा लग रहा था मानो छठी मैया स्वयं इस पवित्र पोखर पर अवतरित हो गई हों. सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस-प्रशासन ने पूरे घाट क्षेत्र में सतर्कता बरती, जिससे श्रद्धालु निश्चिंत होकर पूजा कर सकें.

पटोरी अनुमंडल क्षेत्र के धमौन गांव में स्थित काली नदी के निकट वाला पोखर इस बार श्रद्धा और उत्सव दोनों का केंद्र बना रहा. अनुमंडल के कोने-कोने से व्रती यहां पहुंचे और छठी मैया की पूजा-अर्चना की. सूर्य अस्त होते ही घाट पर अर्घ्य देने वालों की लंबी कतारें लगीं, जिससे ऐसा लगा कि पूरा गांव एक साथ पूजा में सम्मिलित है. बच्चों की आतिशबाजी, गीत-संगीत की ध्वनि और ढोलक की थाप ने माहौल को जीवंत बना दिया. यह आयोजन बिहार की लोक-संस्कृति और सामूहिक एकता का प्रतीक बन गया. अगले दिन प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती अपने चार दिवसीय व्रत का समापन करेंगे. इस छठ घाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया है.

हसनपुर प्रखंड के सभी घाटों पर आज श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता था. छठ व्रती पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दे रहे थे. परिवार के सदस्य सिर पर दौरा रखे घाट की ओर जा रहे थे और छठव्रती गीत गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रही थीं. हर चेहरे पर भक्ति और आनंद का अनोखा मिश्रण था. छठी मैया की पूजा के दौरान आस्था की ज्योति हर हृदय में प्रज्वलित हो चुकी थी. प्रशासनिक व्यवस्था भी सराहनीय रही, स्थानीय पुलिस बल और स्वयंसेवक मुस्तैद थे. श्रद्धालुओं ने परिवार, समाज और क्षेत्र की शांति व समृद्धि की मंगलकामना करते हुए डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया.

पूसा प्रखंड क्षेत्र के गंडक नदी किनारे और कृत्रिम तालाबों में छठ का आयोजन अद्भुत रहा. भोर से ही श्रद्धालु तैयारी में जुट गए थे, फल, ठेकुआ, नारियल और प्रसाद की थालियाँ पूरे माहौल को सुगंधित कर रही थीं. संध्या होते ही, जल में खड़े व्रतियों ने सूर्य को अर्घ्य देना शुरू किया. सूर्य की अंतिम किरणें जब जल की लहरों पर झिलमिलाईं, तो दृश्य अवर्णनीय हो गया. यह पर्व प्रवासी बिहारियों के लिए अपनी मिट्टी से जुड़ने का क्षण भी बनता है. प्रदेश से बाहर रहने वाले कई लोग विशेष रूप से अपने गांव लौटकर इस पर्व को मनाने आए.

पटोरी प्रखंड में आज का दृश्य अत्यंत मनमोहक था. घाटों को रंगीन रोशनी, फूलों और रंगोली से सजाया गया था. महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर, हाथों में कलश लिए, पूरे विधि-विधान से पूजा की. डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का वह क्षण इतना पवित्र था कि श्रद्धा के आँसू भी कई आंखों से स्वतः छलक उठे. सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन की सक्रियता और स्थानीय युवाओं की सेवा भावना ने आयोजन को और भी अनुशासित बनाया. पटोरी प्रखंड के शिउड़ा एवं अरैया घाटों पर पूरा माहौल भक्तिमय था.

मोहनपुर प्रखंड के तालाबों और नदी किनारों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही थी. व्रती के परिवार के लोग सिर पर दौरा रखे, पूरे परिवार के साथ घाट की ओर प्रस्थान कर रहे थे। संध्या में जब सूर्य लालिमा बिखेरते हुए क्षितिज में समा रहा था, तब घाटों पर गूंजते गीतों की ध्वनि ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया. यहां हर किसी के चेहरे पर सुकून और श्रद्धा का भाव था, मानो इस अर्घ्य के साथ जीवन की सारी बाधाएँ दूर हो जाएँगी.

तीसरे दिन की संध्या भले ही समाप्त हो चुकी है, पर भक्तों की आस्था अभी भी चरम पर है. अब सभी की निगाहें अगले दिन की भोर पर टिकी हैं, जब व्रती महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने चार दिवसीय व्रत का समापन करेंगी. समस्तीपुर का यह दृश्य न केवल आस्था की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि बिहार की मिट्टी में अभी भी वह लोक-संस्कृति, वह श्रद्धा और वह एकता जीवित है जो पीढ़ियों को जोड़ती आई है. छठ पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उदाहरण है, जो हमें हर वर्ष याद दिलाती है.







