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Shardiya navratri 2025 fifth day of maa kushmanda know puja vidhi muhurat and mantra bhog and maa kushmanda aarti and importance of kushmanda devi puja | नवरात्रि के पांचवे दिन मां कुष्‍मांडा की पूजा, जानें पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र, भोग और आरती


शारदीय नवरात्रि 2025 का पांचवा दिन, मां कुष्‍मांडा: शारदीय नवरात्रि का आज पांचवा दिन है और इस दिन मां दुर्गा की पांचवी शक्ति मां कुष्‍मांडा की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन माता के भक्त पूरे परिवार के साथ विधि विधान के साथ माता दुर्गा की पूजा करते हैं और विश्व के कल्याण की कामना करते हैं. माता का यह स्वरूप सृष्टि की आदिशक्ति है, जिन्होंने अपनी मंद मुस्कान (कूष्मांड) से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसी कारण माता का नाम कुष्‍मांडा पड़ा. भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा से मां की पूजा कर सुख-समृद्धि और रोग-मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है और माता के इस स्वरूप को पीले फल, पीले फूल और पीले वस्त्र अर्पित करते हैं. आइए जानते हैं मां कुष्‍मांडा देवी की पूजा विधि, मंत्र, भोग और आरती…

माता कूष्मांडा की पूजा का महत्व
वैसे तो माता कूष्मांडा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन होती है लेकिन इस बार तृतीया तिथि दो दिन होने की वजह से नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा की चौथी शक्ति कुष्मांडा का पूजा अर्चना की जा रही है. पंचमी तिथि पर मां कूष्मांडा की पूजा से जीवन में ऊर्जा, सृजन शक्ति और आयु का विस्तार होता है. कुष्‍मांडा माता की पूजा अर्चना करने से सभी रोग व कष्ट दूर हो जाते हैं और माता के आशीर्वाद से हर कार्य सिद्ध होते हैं. देवी पुराण और दुर्गा सप्तशती में उल्लेख है कि अंधकार में जब कुछ भी अस्तित्व में नहीं था, तब मां कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से सृष्टि का प्रारंभ किया. इसलिए इन्हें आदि स्वरूपिणी और सृष्टि की जननी कहा जाता है.

मां कुष्मांडा का प्रिय भोग
मां कुष्मांडा को मालपुआ अत्यंत प्रिय है. भक्त इसे बनाकर या मंदिर में चढ़ाकर मां को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि इस भोग से बुद्धि तेज होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है. साथ ही मां की कृपा से रोग-शोक और ग्रहदोष दूर होते हैं और मालपुए का भोग अर्पित करने से भक्त को बुद्धि, सुख-संपत्ति और आयु की वृद्धि मिलती है.

ऐसा है माता कुष्मांडा का स्वरूप
देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप मां कूष्मांडा कहलाता है. माता की आठ भुजाएं होती हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है. उनके हाथों में कमल, धनुष-बाण, कमंडल, अमृतकलश, चक्र, गदा, जपमाला और एक हाथ में वरमुद्रा रहती है. माता का वाहन सिंह है, जो वीरता और शक्ति का प्रतीक है. माता का शरीर सूर्य के समान दीप्तिमान है. मान्यता है कि वे सूर्यमंडल के मध्य विराजमान रहती हैं और सूर्यलोक को नियंत्रित करती हैं.

माता कूष्मांडा की पूजा का मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 04:37 ए एम से 05:24 ए एम
अभिजित मुहूर्त: 11:49 ए एम से 12:37 पी एम
विजय मुहूर्त: 02:13 पी एम से 03:01 पी एम

मां कूष्मांडा के मंत्र
1- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नमः
2- ध्यान मंत्र: सूर्य मण्डल मध्यवर्ती अष्टभुजा देवी, विविध आयुधों से सुशोभित, सिंह पर आरूढ़, तेजस्विनी, अनंत शक्तिरूपिणी मां कूष्मांडा को नमन.
3- ॐ देवी कुष्माण्डायै नमः
4- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
5- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
इन मंत्र का 108 बार जप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर होती हैं.

मां कुष्मांडा की पूजा विधि
– सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें. संकल्प लें: मैं श्रद्धा-भक्ति से मां कूष्मांडा की पूजा कर रहा/रही हूँ, कृपा करें.
– मां कुष्मांडा की प्रतिमा या चित्र को लाल या पीले वस्त्र पर स्थापित करें. दीपक जलाकर गणेश व कलश की पूजा के बाद देवी का आवाहन करें.
– इसके बाद माता को लाल पुष्प, रोली, सिंदूर, अक्षत, धूप-दीप, सुपारी, लौंग, इलायची, नारियल, मौली, इत्र अर्पित करें.
– मां को मालपुआ, हलवा या खीर का भोग चढ़ाना शुभ माना जाता है. फिर अंत में मां कुष्मांडा की आरती करें और मंत्रों का जाप करें.

मां कुष्‍मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

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