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मां शीतला को हिंदू धर्म में चर्म रोगों का निवारण करने वाली देवी माना जाता है. इनके नाम मात्र से ही बड़े-बड़े चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. उनकी सवारी गधा होने के पीछे भी एक पौराणिक कहानी है, जिसका वर्णन शास्त्रों म…और पढ़ें
गधे पर विराजमान रहती है यह देवी
हाइलाइट्स
- मां शीतला चर्म रोगों का निवारण करती हैं.
- शीतला माता की सवारी गधा है.
- शीतला अष्टमी पर मां शीतला की पूजा होती है.
करौली:- हिंदू धर्म में एक ऐसी देवी भी हैं, जिनकी सवारी गधा है. ये देवी गधे पर विराजमान रहती हैं. गधे पर सवार रहने वाली इस देवी को हिंदू धर्म में शीतला माता के नाम से पूजा जाता है. इनकी पूजा के लिए साल में एक ही सबसे बड़ी तिथि होती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां शीतला का पूजन केवल शीतला अष्टमी के दिन ही किया जाता है.
मां शीतला को हिंदू धर्म में चर्म रोगों का निवारण करने वाली देवी माना जाता है. इनके नाम मात्र से ही बड़े-बड़े चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. उनकी सवारी गधा होने के पीछे भी एक पौराणिक कहानी है, जिसका वर्णन शास्त्रों में मिलता है.
क्या है माता शीतला के वाहन की कहानी?
ज्योतिषाचार्य पं. धीरज शर्मा Bharat.one को बताते हैं कि हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के अलग-अलग वाहन होते हैं. जैसे माता दुर्गा का वाहन शेर है, माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है, माता गंगा का वाहन मगरमच्छ और माता सरस्वती का वाहन हंस है. उसी प्रकार, माता शीतला का वाहन गधा है. वह बताते हैं कि माता शीतला का वाहन गधा होने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है.
पंडित धीरज शर्मा के अनुसार, एक दिन माता शीतला अपना वेश बदलकर एक गांव में घूम रही थी. इसी दौरान किसी ने उनके ऊपर चावल का गर्म पानी डाल दिया, जिससे उनके शरीर पर फफोले हो गए. माता शीतला उस समय दर्द से काफी परेशान हुईं, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की. तब गांव की एक कुम्हार समाज की महिला ने उनकी सेवा की.
कुम्हार महिला ने माता को दिया भेंट
माता शीतला उस महिला की सेवा से प्रसन्न होकर उसके समस्त कष्टों का निवारण कर दिया. पौराणिक कथा के अनुसार, उस कुम्हार महिला के पास माता को बैठाने के लिए कोई स्थान नहीं था, तो उसने अपने घर में बंधे हुए एकमात्र गधे को माता को भेंट स्वरूप दे दिया. माता शीतला ने इस भाव से प्रसन्न होकर गधे को अपना वाहन बना लिया. इसी कारण शीतला अष्टमी के अवसर पर माता शीतला के साथ उनकी सवारी गधे का भी पूजन कई स्थानों पर किया जाता है.
कलश और नीम की पत्तियां करती हैं धारण
पंडित धीरज शर्मा के अनुसार, माता शीतला अपने एक हाथ में कलश धारण करती हैं, जो शुद्धता का प्रतीक है. दूसरे हाथ में झाड़ू रखती हैं, जो सफाई का प्रतीक है. इसके अतिरिक्त, उनके हाथ में सूप भी होता है, जो अनाज छानने का कार्य करता है और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. माता शीतला नीम की पत्तियां भी धारण करती हैं. शीतला अष्टमी के बाद चैत्र नवरात्रि में भी माता शीतला की आराधना की जाती है.
ठंडे पकवानों से होती हैं प्रसन्न
माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए भक्त उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाते हैं. ऐसा माना जाता है कि माता को केवल ठंडे और बासी पकवान ही पसंद हैं. इसलिए शीतला अष्टमी के अवसर पर बासोड़ा का प्रसाद अर्पित किया जाता है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
