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Pithoragarh News: जागर उत्तराखंड की एक प्राचीन लोक परंपरा है, जिसमें ढोल-दमाऊ की थाप पर देवताओं का आह्वान किया जाता है. इसे रात में गाया जाता है और इसमें लोकगायक जागरिये देवगाथाएं सुनाते हैं. माना जाता है कि इस अनुष्ठान के दौरान देवता अवतरित होकर लोगों की समस्याओं का समाधान बताते हैं.

जागर उत्तराखंड की एक प्राचीन लोक-धार्मिक परंपरा है, जो देवताओं और लोकदेवताओं को “जगाने” यानी आह्वान करने से जुड़ी है. ‘जागर’ शब्द का अर्थ ही होता है जागरण. इसमें ढोल-दमाऊ की थाप, गीतों और कथाओं के माध्यम से देवताओं की कथा गाई जाती है. माना जाता है कि जागर के दौरान देवता अवतरित होकर श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान बताते हैं.

जागर की परंपरा सदियों पुरानी है और इसकी जड़ें शैव, शाक्त और लोक-आस्थाओं में मिलती हैं. यह परंपरा तब से चली आ रही है, जब पहाड़ों में लिखित ग्रंथों से अधिक मौखिक परंपराएं प्रचलित थीं. गांव-गांव में जागर के माध्यम से इतिहास, लोककथाएं और धर्म एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता रहा है.

जागर मुख्य रूप से लोकदेवताओं के लिए किया जाता है. इनमें गोलू देवता, भूमियां देवता, गंगनाथ, ऐड़ी देव, हरू सेम, पांडव और नंदा देवी प्रमुख हैं. हर देवता का जागर अलग शैली और कथानक में गाया जाता है. इन देवताओं को न्याय, सुरक्षा और कल्याण का प्रतीक माना जाता है.
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जागर का आयोजन हर बार रात में किया जाता है और यह कई घंटों, कभी-कभी पूरी रात चलता है. इसमें “जगरिया” (गायक) देवताओं की गाथा गाता है और “डंगरिया” या “पश्वा” पर देवता के अवतरित होने की मान्यता होती है. ढोल-दमाऊ की विशेष ताल से वातावरण आध्यात्मिक हो जाता है. अंत में देवता से प्रश्न पूछे जाते हैं और समाधान मांगा जाता है.

लोकमान्यता है कि जागर करने से देवता प्रसन्न होते हैं और परिवार या गांव पर आई आपदाएं दूर होती हैं. बीमारी, मानसिक कष्ट, पारिवारिक विवाद या फसल से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए लोग जागर कराते हैं. विश्वास किया जाता है कि देवता जागर में सच्चा मार्गदर्शन देते हैं और गलत कार्यों के लिए चेतावनी भी देते हैं.

जागर केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का माध्यम भी है. इसमें पूरा गांव शामिल होता है, जिससे आपसी संबंध मजबूत होते हैं. यह परंपरा लोक-संगीत, नृत्य और भाषा को जीवित रखती है. जागर के गीतों में पहाड़ का जीवन, संघर्ष और आस्था साफ झलकती है.

आधुनिक समय में भी जागर की परंपरा जीवित है. हालांकि अब इसके स्वरूप में कुछ बदलाव आए हैं, फिर भी आस्था वही बनी हुई है. जागर अब मंचों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी प्रस्तुत किया जाने लगा है, जिससे नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ रही है.

जागर उत्तराखंड की आत्मा का प्रतीक है. यह आस्था, संगीत और परंपरा का ऐसा संगम है, जो इंसान और ईश्वर के बीच सेतु बनता है. बदलते समय के बावजूद जागर आज भी लोगों के विश्वास और जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है.







