दरअसल रामचरितमानस में एक कांड है, जिसे सुंदरकांड के नाम से जाना जाता है. जिसमें हनुमान जी महाराज की महिमा और प्रभु राम के प्रति हनुमान जी महाराज की भक्ति को दर्शाया गया है. सुंदरकांड में एक चौपाई है
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई.
गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही, राम कृपा करि चितवा जाही.
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना, पैठा नगर सुमिरि भगवाना.
सुंदरकांड की इस चौपाई में हनुमान जी महाराज के लंका में प्रवेश करने का वर्णन किया गया है. इस चौपाई के बारे में विस्तार से शशिकांत दास बताते हैं.
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई…अर्थात विष को अमृत समझना और शत्रु को मित्र समझना. समुद्र को गाय के पैर के निशान के समान और आग को ठंडी समझना.
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना, पैठा नगर सुमिरि भगवाना….अर्थात हनुमान जी ने अपना आकार बहुत छोटा कर लिया और भगवान राम को याद करते हुए नगर में प्रवेश किया.
शशिकांत दास बताते हैं कि इस चौपाई में हनुमान जी के लंका में प्रवेश करने के लिए उनकी तैयारी और भगवान राम की कृपा का वर्णन किया गया है. इस चौपाई का जाप करने से हनुमान जी महाराज की शक्ति और प्रभु राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जीवन के सभी कार्य आसानी से पूरे भी होते हैं. साथ ही सुंदरकांड का अनुसरण करने से हर परेशानियों का अंत होता है.