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ताजमहल से पहले यमन और मध्य एशिया में सफेद संगमरमर के मकबरे बने थे. ताजमहल 1632-1648 में शाहजहां ने मुमताज महल की याद में बनवाया. मुगल आर्किटेक्ट्स ने पुराने मकबरों से प्रेरणा ली थी.

इस्लाम में पहला नहीं है ताजमहल.
हाइलाइट्स
- ताजमहल से पहले यमन और मध्य एशिया में सफेद संगमरमर के मकबरे बने थे.
- ताजमहल 1632-1648 में शाहजहां ने मुमताज महल की याद में बनवाया.
- मुगल आर्किटेक्ट्स ने पुराने मकबरों से प्रेरणा ली थी.
जब भी सफेद संगमरमर के मकबरे की बात आती है, तो सबसे पहले लोगों के मन में ताजमहल की छवि उभरती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सफेद संगमरमर से बना पहला इस्लामी मकबरा भारत में नहीं, बल्कि यमन और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में बन चुका था? इतिहास की गहराइयों में जाएं तो पता चलता है कि ताजमहल से पहले भी कई जगहों पर सफेद पत्थरों से मकबरे बनाए गए थे. लेकिन फिर भारत के आगरा में स्थित ताजमहल को ही अक्सर दुनिया का सबसे खूबसूरत मकबरा माना जाता है, जो मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था.
यह 1632 में बनना शुरू हुआ और लगभग 1648 में बनकर तैयार हुआ. लेकिन इससे पहले भी इस्लामिक आर्किटेक्चर में सफेद संगमरमर का इस्तेमाल हो चुका था. यमन के जाबिद और तुरान जैसे इलाकों में 14वीं और 15वीं शताब्दी में बने मकबरों में सफेद पत्थरों का इस्तेमाल देखा गया है. साथ ही, ईरान और उज्बेकिस्तान के कुछ ऐतिहासिक इस्लामिक स्मारकों में भी सफेद संगमरमर की नक्काशी देखने को मिलती है, जैसे- गुर-ए-अमीर, जो तैमूर लंग का मकबरा है, उसकी बाहरी सजावट में संगमरमर और टाइल्स दोनों का सुंदर मिश्रण है.
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इतिहासकारों का मानना है कि मुगल आर्किटेक्ट्स ने इन पुराने मकबरों और मस्जिदों से प्रेरणा लेकर ही ताजमहल की भव्यता रची. यही वजह है कि ताजमहल की बनावट में फारसी, तुर्की और इस्लामी आर्किटेक्चर की झलक साफ दिखाई देती है. यह जानना दिलचस्प है कि सफेद संगमरमर केवल सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि पवित्रता और शांति का प्रतीक भी माना जाता था. इसीलिए पुराने समय में राजा-महाराजा या बड़े सूफी संतों के मकबरों के निर्माण में इसका प्रयोग किया जाता था.