Wednesday, September 24, 2025
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Triveni Sangam: हरिद्वार-काशी नहीं जा सकते तो इस त्रिवेणी संगम पर करें स्नान, मिट जाएंगे पाप!



बागेश्वर. उत्तराखंड अपने धार्मिक महत्व को लेकर देश-विदेश में प्रचलित है. यहां के कई शहरों को धर्मनगरी कहा जाता है. ऐसे ही बागेश्वर को भी धर्मनगरी का नाम दिया गया है. इसके पीछे की खास वजह यह है कि बागेश्वर में ऋषिकेश और काशी की तरह ही त्रिवेणी संगम है. इस संगम का काशी की तरह ही विशेष महत्व है. भारतीय धार्मिक स्थलों में त्रिवेणी संगम को सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है. ‘संगम’ का अर्थ है मिलन यानी ऐसी जगह जहां दो या उससे ज्यादा नदियां मिलती हैं.

बागेश्वर के बागनाथ मंदिर के आचार्य पंडित कैलाश उपाध्याय ने Bharat.one को बताया कि बागेश्वर में सरयू, गोमती और सरस्वती से मिलकर त्रिवेणी संगम बनता है. इसमें सरस्वती नदी अदृश्य रूप में है. माघ के महीने में त्रिवेणी संगम में स्नान करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि ऐसा करने से हरिद्वार, ऋषिकेश और काशी की तर्ज पर सारे पाप धुल जाते हैं. उन्होंने बताया कि सूर्य के मकर में प्रवेश करने के बाद से संगम में कभी भी स्नान किया जा सकता है. स्नान करने से मनुष्य को सुख-शांति की प्राप्ति तो होगी ही, साथ में जाने-अनजाने में किए गए पापों से भी मुक्ति मिलेगी. मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर के त्रिवेणी संगम पर स्नान करने के लिए हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. सुबह के चार बजे से यहां भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है और शाम के चार बजे तक भक्त आते रहते हैं. उत्तराखंड के कई जिलों और बाहरी राज्यों के लोग यहां दर्शन और स्नान के लिए पहुंचते हैं.

कभी भी कर सकते हैं स्नान
पंडित कैलाश उपाध्याय ने आगे कहा कि माघ के महीने में त्रिवेणी संगम में स्नान करने का कोई विशेष समय नहीं है. आप दिन-रात कभी भी आकर यहां स्नान कर सकते हैं. स्नान के लिए बागेश्वर के त्रिवेणी संगम के घाटों में सफाई, शौचालय और स्नान टेंट की व्यवस्था की गई है. माघ के माह में सरयू और गोमती नदी के घाटों पर स्नान किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व पौराणिक काल से ही चला आ रहा है. इन संगमों को एक पवित्र स्थान माना गया है. हिंदू परंपराओं के अनुसार, त्रिवेणी संगम को बेहद ही पवित्र माना जाता है. यहां स्नान से सभी पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुराणों के मुताबिक, अमृत मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें त्रिवेणी संगमों में गिरी थीं. इन स्थानों को ऋषि-मुनियों की तपोभूमि भी माना जाता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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