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Unknown Facts About Dakshina Kasi Sri Durga Nageswara Swamy Temple Know Similarities and history of kashi vishwanath and Durga Nageswara Swamy mandir | श्री दुर्गा नागेश्वर स्वामी मंदिर: सर्प दोष निवारण का प्रमुख तीर्थ, दक्षिण का काशी


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Dakshina Kasi Temple: काशी विश्वनाथ को नहीं जानता, उनके दर्शन करने मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. काशी की तरह दक्षिण भारत में भी एक ऐसा मंदिर है, जिसकी तुलना काशी विश्वनाथ से की जाती है. दोनों मंदिरों की समानता और भगवान शिव और मां पार्वती के प्रेम और तप का प्रतीक इन दोनों मंदिरों में देखने को मिलता है. आइए जानते हैं दक्षिण के काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में…

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दक्षिण का काशी में दर्शन करने मात्र से कालसर्प और ग्रह दोष से मिलेगी मुक्ति

Dakshina Kasi Sri Durga Nageswara Swamy Temple: पूरे भारत में काशी को मोक्ष का स्थान कहा गया है और वहां काशी विश्वनाथ के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं, लेकिन दक्षिण भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसे दूसरा काशी कहा जाता है. काशी और आंध्र प्रदेश का एक गांव, पेडकल्लेपल्ली, आध्यात्मिक और भौगोलिक दृष्टि से एक जैसे हैं और यही वजह है कि पेडकल्लेपल्ली में बने शिव मंदिर की तुलना काशी के विश्वनाथ शिव मंदिर से होती है. इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से ग्रहों से जुड़े सभी दोषों का निवारण होता है और कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि यहां भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और यहां आने पर शिवलोक जैसा महसूस होता है. आइए जानते हैं दक्षिण के काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में…

पेडाकल्लेपल्ली श्री दुर्गा नागेश्वर स्वामी मंदिर
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पास बने पुराने गांव पेडाकल्लेपल्ली में श्री दुर्गा नागेश्वर स्वामी मंदिर स्थापित है. इस मंदिर को पेडाकल्लेपल्ली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर में भगवान शिव नागेश्वर स्वामी के रूप में विराजमान हैं और मां पार्वती को मां दुर्गा के रूप में विराजित किया गया है. ये मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती के प्रेम और तप का प्रतीक है.

क्षेत्रपालक के रूप में भगवान वेणुगोपाल स्वामी मौजूद
मंदिर को पुराने समय से ही दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पेडाकल्लेपल्ली में कृष्णा नदी उत्तर की ओर बहती है जैसे गंगा नदी बनारस में उत्तर की ओर बहती है. दूसरा, काशी में क्षेत्रपालक भगवान बिंदु माधव स्वामी हैं, जबकि पेडाकल्लेपल्ली में क्षेत्रपालक के रूप में भगवान वेणुगोपाल स्वामी मौजूद हैं. माना जाता है कि वेणुगोपाल स्वामी को पेडाकल्लेपल्ली का क्षेत्रपाल खुद महर्षि विश्वामित्र ने बनाया था.

शैली में उत्तर भारत और दक्षिण भारत
मंदिर की दीवार से लेकर गोपुरुम तक कई अलग राजाओं और शैलियों की झलक देखने को मिलती है. 12वीं शताब्दी में काकतीय राजगुरु सोमशिवाचार्य ने निर्माण कार्य शुरू किया था, जिसके बाद 17वीं शताब्दी में श्री यारलागड्डा कोदंडा रमन्ना ने मंदिर का कुछ हिस्सा बनवाया और 1795 में मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े श्री यारलागड्डा नागेश्वर राव नायडू ने मंदिर के गोपुरम का निर्माण कराया. मंदिर पर काकतीय शैली का सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. इस शैली में उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों की झलक देखने को मिलती है.

ग्रह दोष और कालसर्प दोष से यहां मिलती है मुक्ति
ग्रहों से जुड़ी समस्या या सर्प दोष से पीड़ित भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए जरूर आते हैं. माना जाता है कि मंदिर में भगवान शिव और मां दुर्गा के सामने अनुष्ठान करने से सारे ग्रह संतुलित हो जाते हैं. मंदिर में सर्प दोष निवारण के लिए अलग से अनुष्ठान कराया जाता है. मंदिर में एक कुंड भी बना है. माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण नागों के कर्कोटक यानी राजा ने किया था. सर्प दोष से बचने के लिए इसी कुंड में भक्त पवित्र स्नान करने आते हैं. शिवरात्रि और सावन के महीने में मंदिर में सबसे ज्यादा भीड़ लगती है.

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दक्षिण का काशी में दर्शन करने मात्र से कालसर्प और ग्रह दोष से मिलेगी मुक्ति

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