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Vinayaka Chaturthi 2025: रवि योग में विनायक चतुर्थी व्रत आज, जानें दो बार क्यों होती है विघ्नहर्ता की पूजा, महत्व, मुहूर्त और कथा


Vinayaka Chaturthi 2025 Today : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है, जो कि इस बार आज यानी शनिवार के दिन पड़ रही है. इस दिन गजानन की विशेष पूजा का महत्व है. पुराणों में इस दिन दो बार पूजन का विशेष महत्व दिया गया है, एक दोपहर और दूसरा मध्य रात्रि में. मान्यता है कि विनायक चतुर्थी पर व्रत करने से जातक के सभी कार्य सिद्ध होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश को सबसे जल्दी प्रसन्न किया जा सकता है क्योंकि विघ्नहर्ता भक्तों का केवल भाव देखते हैं. आइए जानते हैं विनायक चतुर्थी का महत्व और पौराणिक कथा के बारे में…

विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से जीवन के सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं. इस दिन व्रत और पूजा करने से सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है. गणपति बप्पा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उनके जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं. अगर यह व्रत विधि-विधान से किया जाए, तो व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है. शास्त्रों में बताया गया है कि विनायक चतुर्थी के दिन दो बार गजानन की पूजा अर्चना की जाती है, ऐसा करने से भगवान गजानन का हमेशा आशीर्वाद बना रहता है.

विनायक चतुर्थी 2025 आज
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ – 1:19 AM, 25 अक्टूबर
चतुर्थी तिथि का समापन – 3:48 AM, 26 अक्टूबर
उदिया तिथि को मानते हुए विनायक चतुर्थी का पर्व आज मनाया जाएगा.

विनायक चतुर्थी 2025 पूजा मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त – 04:46 ए एम से 05:37 ए एम
विजय मुहूर्त – 01:57 पी एम से 02:42 पी एम
गोधूलि मुहूर्त – 05:42 पी एम से 06:07 पी एम
रवि योग – 07:51 ए एम से 06:29 ए एम, 26 अक्टूबर

विनायक चतुर्थी की कथा
विनायक चतुर्थी पर एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि एक बार माता पार्वती और भगवान शिव साथ में चौपड़ खेल रहे थे. खेल के दौरान यह तय नहीं हो पा रहा था कि हार-जीत का फैसला कौन करेगा. माता पार्वती ने घास-फूस से एक बालक बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा की. खेल में पार्वती जी तीन बार विजेता रहीं, लेकिन बालक ने गलती से शिवजी को विजेता घोषित कर दिया. इससे क्रोधित होकर माता पार्वती ने बालक को कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माफी मांगी, तो माता ने कहा कि एक वर्ष बाद नागकन्याएं आएंगी, उनके बताए अनुसार विनायक चतुर्थी का व्रत करने से कष्ट दूर होंगे.

एक वर्ष के बाद उस जगह पर नाग कन्याएं आईं और उन्होंने बालक को श्री गणपति के व्रत की विधि बताई. विधि मालूम कर बालक ने लगातार 21 दिन तक गणपति की विधि-विधान से पूजा और व्रत किया. बालक की श्रद्धा भाव देख गजानन प्रसन्न हुए. उन्होंने बालक को मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए कहा, जिस पर बालक ने ठीक होने की इच्छा जताई और कैलाश पर्वत पर पहुंचाने के लिए कहा. बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और अपनी कहानी भगवान शिव को सुनाई.

चौपड़ वाले दिन से माता भगवान शिव से नाराज थी, आखिर में, देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन में भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई. भोलेनाथ ने माता पार्वती को व्रत विधि बताई. यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई. माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया. व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले.

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