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Why does Chhath Puja begin with a bath and a meal? Learn the religious and scientific reasons behind this tradition. – Haryana News


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Faridabad latest News: छठ पूजा आस्था, अनुशासन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है. त्रेता युग में माता सीता और द्वापर में कर्ण द्वारा आरंभ किया गया यह पर्व सूर्य उपासना का महापर्व है. चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत में व्रती 36 घंटे निर्जल रहकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, सुख-समृद्धि और शुद्ध जीवन की कामना करते हैं.

फरीदाबाद: छठ पूजा का त्योहार नजदीक है. यह पर्व न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि आस्था और अनुशासन के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है. यह पर्व भगवान सूर्य की उपासना और षष्ठी माता की आराधना का होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह महापर्व चार दिनों तक चलता है. नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इसका समापन होता है. यह पर्व न सिर्फ बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बल्कि आज पूरे देश और विदेशों में भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है.

माता सीता ने सबसे पहले इस व्रत को किया था

Local18 से हुई बातचीत में महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य ने बताया कि छठ पर्व की परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. माता सीता ने सबसे पहले इस व्रत को किया था. वे सूर्यवंशी भगवान श्रीराम की पत्नी थीं और सूर्यदेव की आराधना के निमित्त उन्होंने मुद्गल ऋषि के बताए अनुसार इस व्रत की शुरुआत की थी. उस समय यह पर्व छह दिनों तक चलता था जिसे अब घटाकर चार दिनों तक किया जाने लगा है.

क्या है धार्मिक मान्यताएं

वेदांताचार्य बताते हैं कि षष्ठी से दो दिन पहले नहाए-खाए का दिन होता है. इस दिन व्रती स्नान कर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं जिसमें चने की दाल और लौकी (कद्दू) की सब्जी बनाई जाती है. यह भोजन शरीर को शुद्ध रखने और व्रत के लिए तैयार करने का प्रतीक माना जाता है. महंत जी ने बताया कि द्वापर युग में सूर्यपुत्र कर्ण ने भी इस व्रत को किया था. उनकी राजधानी अंग देश (वर्तमान बिहार) में थी इसलिए माना जाता है कि छठ महापर्व की मुख्य परंपरा बिहार से ही पूरे देश में फैली. द्रौपदी ने भी जब पांडव वनवास में थे, तब इस व्रत को किया था. इसलिए यह व्रत केवल धार्मिक नहीं बल्कि ऐतिहासिक परंपरा का भी प्रतीक है.

36 घंटे तक निर्जल उपवास

छठ व्रत को सबसे कठिन व्रत इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें 36 घंटे तक निर्जल उपवास रखा जाता है. व्रती न तो अन्न ग्रहण करते हैं न जल. यह पूर्ण आत्मसंयम और श्रद्धा का व्रत है. सूर्यदेव की आराधना करने से व्यक्ति को निरोगी काया, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है. महंत कामेश्वरानंद बताते हैं कि आज विज्ञान भी मानता है कि सूर्य की रोशनी से शरीर में ऊर्जा आती है और आंखों की कई बीमारियां दूर होती हैं.

कैसे शुरू होती छठ की पूजा

छठ पूजा प्रकृति से गहराई से जुड़ा पर्व है. इसमें व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर दिनभर की थकान और दुखों को विदा करते हैं और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर नए जीवन और उजाले का स्वागत करते हैं. ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने सबसे पहले यह व्रत मुंगेर और सरयू नदी के किनारे किया था. आज वही परंपरा हर घर में, हर घाट पर दोहराई जाती है  जहां महिलाएं पीले वस्त्र धारण कर, सिर ढककर, पूरी श्रद्धा से सूर्य को अर्घ्य देती हैं.

छठ पूजा केवल पूजा नहीं बल्कि आत्म-शुद्धि, संयम, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है. यही कारण है कि इसे सनातन धर्म का सबसे कठिन और सबसे पवित्र महापर्व कहा गया है.

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छठ पूजा की शुरुआत नहाए-खाए से क्यों होती है? जानिए इसके पीछे की वजह

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