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Why Not Tie Kalawa In Pitru Paksha: पितृपक्ष में कलावा न बांधने की परंपरा सिर्फ एक नियम नहीं, बल्कि भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है. यह समय पूर्वजों को याद करने, उनकी आत्मा की शांति करने और संयम का पालन करने का …और पढ़ें

पितरों की पूजा में कलावा क्यों नहीं बांधा जाता?
कलावा सिर्फ लाल या पीले रंग का धागा नहीं होता, बल्कि इसे शुभता और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है. इसे बांधने से व्यक्ति देवी-देवता की कृपा और रक्षा प्राप्त करता है, लेकिन पितृपक्ष में पूजा का उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति है. इस दौरान यदि हाथ में कलावा बांधा जाए, तो यह पूजा की सादगी और भक्ति में बाधा डालता है. पंडित जन्मेश द्विवेदी जी के अनुसार, पितरों की पूजा में साधारणता और निःस्वार्थ भाव होना चाहिए. कलावा बांधना इस भाव के विपरीत माना जाता है.
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, लाल और पीले रंग के धागे पूजा-पाठ में शुभ माने जाते हैं. इनका उपयोग मुख्य रूप से देवी-देवताओं की आराधना में किया जाता है. पितृपक्ष में हालांकि पूजा का उद्देश्य देवताओं से ज्यादा पूर्वजों को श्रद्धांजलि देना होता है. इसलिए हाथ में कलावा बांधना पूजा की पवित्रता और साधु भाव के अनुरूप नहीं होता. पितरों की पूजा सादगी, स्वच्छता और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए, न कि किसी दिखावे या सजावट के लिए.
पितृपक्ष में तर्पण और पिंडदान मुख्य विधियां हैं. यह समय पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा को तृप्त करने का होता है. कलावा हमारी खुद की सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक है. पितृपक्ष में यदि इसे बांधा जाए, तो यह भक्ति और पूजा की दिशा को प्रभावित कर सकता है. इसलिए इस समय केवल तर्पण, पिंडदान और सात्विक भोजन का ही महत्व है.

1. घर को स्वच्छ और व्यवस्थित रखें.
2. पितरों को तर्पण और पिंडदान श्रद्धा भाव से अर्पित करें.
3. ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं और दान दें.
4. सात्विक भोजन करें और मांसाहार से बचें.
पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य केवल पूजा करना नहीं, बल्कि पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद प्राप्त करना है. पूजा-विधि शास्त्रों के अनुसार सरल और सादगीपूर्ण होनी चाहिए. कलावा न बांधना इसी परंपरा का हिस्सा है.