सावन का नाम लेते ही फुहारों की याद आ जाती है. फुहारों के साथ ही याद आ जाती हैं पकौड़ियां. खाने की दूसरी चटपटी चींजें. मन मगन हो जाता है. या फिर सावन के साथ ही घेवर याद आने लगते हैं. ये तो हो गई बातें कि सावन में क्या खाना चाहिए. लेकिन पुरानी लोकोक्तियां कुछ और बताती हैं. उनमें खास तौर से कहा गया है कि सावन में क्या नहीं खाना चाहिए. उत्तर प्रदेश के पूरबी हिस्से में घाघ की कहावतें इस बारे में खूब प्रचलित हैं. तो देखिए-
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल.
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही.
अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना.
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय.
तो इस कहावत में ये तो समझ में ही आ जाता है कि सावन में साग नहीं खाना चाहिए. लेकिन इसका पूरा मतलब समझना न सिर्फ रोचक है, बल्कि आयुर्वेद के जानकार इसे प्रमाणित भी करते हैं. चैत के महीने में आम तौर पर दिन गर्म और राते ठंढी होती हैं. वात-पित्त बढ़ने का अंदेशा रहता है. इस लिहाज से गुड़ खाना इस कहावत में मना किया गया है. वैसे भी त्योहारों के इस महीने में लोग पहले से तमाम मिठाइयां वगैरह उदरस्थ करते ही रहते हैं.
वैशाख के महीने में तेल का सेवन कम करना चाहिए. जबकि जेठ के गरम महीने में यात्रा भी नहीं करनी चाहिए. दरअसल, जब कहावत कही गई होगी तो लोग पैदल ही यात्राएं करते थे. लिहाजा जेठ की गर्मी से नुकसान होने का अंदेशा ज्यादा रहा होगा. आषाढ़ का महीना आते आते उस समय बरसात शुरु हो जाती थी लिहाजा बेल या बेल पत्थर का प्रयोग करना चाहिए जो पेट को लाभ देता है. इससे पेट साफ भी होता है. अब सावन की बात आती है तो सावन में साग खाना वर्जित है क्योंकि इस समय साग में कीड़े वगैरह हो सकते हैं. भादो में दही नहीं खानी चाहिए. क्योंकि बरसात के इस मौसम में गर्म प्रकृति वाली दही नुकसानदेह हो सकती है. क्वार यानी सर्दियों के मौसम करेले और कार्तिक में मही मतलब छाछ से परहेज करना चाहिए, क्योंकि मंदाग्नि होती है. अगहन के महीने जीरा नहीं खाना चाहिए. पूष के महीने में धनिया से बचना चाहिए तो माघ में मिश्री और फागुन में चने से परहेज करना चाहिए. अंत में रचनाकार घाघ कहते हैं कि इन बारह चीजों से जो बचेगा उसके घर में वैद्य कभी नहीं जाएगा.
कहावतें इतने पर ही नहीं रुकतीं. किस महीने में क्या खाना चाहिए ये भी बताती हैं. देखिए –
चइते चना, बइसाखे बेल, जेठे सयन असाढ़े खेल
सावन हर्रे, भादो चीता, कुवार मास गुड़ खाओ नीत
कातिक मुरई, अगहन तेल, पूस कर दूध से मेल
माघ मास घिव खिंच्चड़ खा, फागुन में उठि प्रात नहा
इसमें घाघ बताते हैं कि चैत में चना, वैशाख में बेल का सेवन करना चाहिए. ,जेठ में दिन में सोना नहीं चाहिए. असाढ़ में खेलना चाहिए. सावन में हर्रे, भादो में चीता यानी चित्रक नाम की वन औषधि जो पाचन को मजबूत करती है उसका सेवन करना चाहिए. जबकि क्वार में गुड़, कार्तिक में मूली, अगहन में तेल और पौष में दूध का सेवन करना चाहिए. इसी तरह माघ महीने में घी डाल कर खिचड़ी खानी चाहिए. जबकि फागुन में घाघ सुबह जल्दी उठ कर नहाने की सलाह देते हैं. क्योंकि देर से उठने पर आलस्य लगता है और आसमान से गिरने वाली ‘सीत’ यानी ओस स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालती है. याद रखे काहावतों के समय काल में लोग खुले आसमान में ज्यादा सोते थे.
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FIRST PUBLISHED : July 27, 2024, 11:15 IST
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