आज 18 सितंबर है और इस दिन वर्ल्ड बैंबू डे (World bamboo day) मनाया जाता है. बैंबू यानी बांस हजारों साल से इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पेड़ की हर चीज उपयोगी है. यह बेहतरीन सब्जी और दवा भी है. इस पेड़ के फायदों को देखते हुए 2009 से वर्ल्ड बैंबू डे मनाने की शुरुआत हुई. दरअसल बैंबू एक घास है जिसे इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 में एक पेड़ माना है और इसे काटना अपराध है. लेकिन 2017 में इसमें संशोधन हुआ और जो बैंबू नॉन-फॉरेस्ट एरिया में उगते हैं, उन्हें पेड़ की जगह घास ही माना गया.
आदिवासियों का ट्रेडिशनल खाना है बैंबू
उत्तर-पूर्वी भारत में बांस की टहनियों और कोपलों से खाने की कई स्वादिष्ट चीजें बनती हैं. बैंबू की कैंडी, आचार, चटनी, जूस, बीयर और सिरका लोगों को खूब पसंद आते हैं. बैंबू फूड एक तरह से ट्रेडिशनल ट्राइबल फूड है. आदिवासी लोग बहुत पहले से बांस की कोपलों और टहनियों से पकवान बनाते आए हैं. बैंबू शूट को स्टीम, पकाकर या बॉयल करके खाया जाता है.
उत्तर-पूर्वी भारत में बांस के पकवान
फूड ब्लॉगर रोहित मावले कहते हैं कि असम में बैंबू शूट से बान्हगाजोर लागोट कुकुरा नाम की डिश बनाई जाती है. यह एक नॉन वेज डिश है जो चिकन से बनती है. इसे असम के लोग चावलों के साथ खाते हैं. नागालैंड में आओ नागा नाम की जनजाति बैंबू शूट से अमरूसू डिश बनाती हैं. इसमें भी चिकन का इस्तेमाल होता है. सिक्किम में लिंबू कम्यूनिटी बैंबू शॉट से मीसू आचार बनाती है. यहां मी का मतलब होता है बांस. इस आचार को मिर्च और लहसुन के साथ डालकर भी बनाया जाता है.
बैंबू शूट से कई तरह की सब्जी बनती हैं (Image-Canva)
बैंबू शूट से बनती हैं लजीज डिशेज
दक्षिण भारत में भी कुछ जगहों पर बांस के शूट से डिशेज तैयार की जाती हैं. कर्नाटक के कुर्ग में बैंबू शूट से कलाले नाम की डिश बनती है. इसमें नारियल, प्याज, लहसुन और सरसों के बीज से करी तैयार की जाती है. कलाले को रोटी के साथ खाया जाता है. आंध्रप्रदेश के अराकू में बैंबू बिरयानी तैयार की जाती है. यह वेज और नॉनवेज दोनों तरह से बनती है. इसे बांस की लड़की में डालकर ही परोसा भी जाता है. महाराष्ट्र के कोंकण में बैंबू से किरला सुक्के नाम की थोड़ी मीठी , थोड़ी खट्टी डिश बनाई जाती है. इसमें नारियल, उड़द की दाल, गुड़, हल्दी से करी तैयार की जाती है जिसे बाद में उबले हुए बैंबू शूट के साथ मिक्स कर दिया जाता है.
बैंबू की चाय पी है?
आपने ग्रीन टी तो पी होगी लेकिन शायद ही बैंबू टी के बारे में सुना हो. बांस से चाय भी बनती है जो दिखने में हूबहू ग्रीन टी की तरह होती है. बैंबू टी बांस के सूखे पत्तों से तैयार की जाती है जो हर्बल टी की कैटेगरी में आती है. यह चाय सिलिका और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती हैं जिससे हड्डियां मजबूत बनती हैं, जॉइंट्स में दर्द नहीं रहता और चेहरे पर झुर्रियां भी नहीं पड़तीं. जिन लोगों को सांस से जुड़ी बीमारी है, उन्हें यह चाय पीनी चाहिए. वहीं जिन लड़कियों को अनियमित पीरियड्स की समस्या है या पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द रहता है, उन्हें भी इस चाय से फायदा मिलता है.
बांस में सेहत का खजाना
बांस जहां वातावरण को प्रदूषित होने से बचाता है, वहीं, इसे खाने से शरीर सेहतमंद रहता है. डायटीशियन सतनाम कौर कहती हैं कि बैंबू में हाई फाइबर, लो फैट और मिनरल्स होते हैं. ताजा बैंबू शूट में 88.8% पानी, 3.9% प्रोटीन और 0.5% फैट होता है. इसमें गाजर, प्याज, पत्ता गोभी और कद्दू से भी ज्यादा अमीनो एसिड होता है. बैंबू खाने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है. इससे वजन भी तेजी से कम होता है और कोलेस्ट्रॉल भी कंट्रोल रहता है.
बैंबू शूट को हमेशा छील कर पकाना चाहिए (Image-Canva)
थायराइड में ना खाएं
बैंबू में सायनाइड टैक्सिफिल्लिन (cyanide taxiphyllin) नाम का एक केमिकल पाया जाता है जो जहरीला होता है. हालांकि अच्छे से पकाने के बाद यह निकल जाता है इसलिए इसे कभी कच्चा या अधपका नहीं खाना चाहिए. बैंबू की डिश बनाने से पहले इसका छिलका निकाल देना चाहिए. बैंबू उन लोगों को बिल्कुल नहीं खाना चाहिए जिन्हें थायराइड की समस्या हो या पहले से पेट से जुड़ी कोई बीमारी हो. जिन लोगों को फूड एलर्जी हो, उन्हें पहले कम मात्रा में इसे खाना चाहिए.
बैंबू गुड लक तो कहीं बैड लक
बैंबू को फेंगशुई में गुड लक माना जाता है. यह ग्रोथ को दिखाता है. कहते हैं घर में बांस लगाने से जल्दी तरक्की होती है. लेकिन कुछ लोग बैंबू को तबाही से भी जोड़ते हैं. चाइनीज में एक कहावत है कि ‘जब बांस पर फूल खिलेंगे तो जल्द ही अकाल और महामारी आ जाएगी’.’ इसके पीछे एक कहानी भी है. हॉन्गकॉन्ग के सरकारी अस्पताल में प्रिंसिपल सिविल मेडिकल ऑफिसर और सुपरिटेंडेंट जॉन मिटफोर्ड एटकिंसन ने एक खत लिखकर मकाऊ से बांस के बीज मंगवाए थे. जब वह बीज उन तक पहुंचे तो उसके लिफाफे पर यही कहावत लिखी थी. इस कहावत को उन्होंने आजमाने की सोची. बीज बोने के बाद जब बांस में 1894, 1896 और 1896 में फूल खिले तब-तब हॉन्गकॉन्ग में प्लेग का फैला.
FIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 17:24 IST
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