Wednesday, December 10, 2025
25 C
Surat

अकबर का रसोई प्रमुख 600 घोड़ों की सेना लेकर क्यों चलता था, कैसी थी मुगलों की शाही किचन


16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान मुगल दरबारों का वैभव और ऐश्वर्य अपने चरम पर था. ऐसा एक हज़ार वर्षों से भी अधिक समय में नहीं देखा गया. कहना चाहिए मुगलों ने पाक कला में भी क्रांति ला दी. मुगल बादशाहों ने भारतीय भोजन की शैली और स्वाद दोनों को प्रभावित किया. उन्होंने साधारण भारतीय पाककला को एक कला में बदला. इस कला को पूरे जोश के साथ संरक्षण दिया. उनका आतिथ्य आज भी प्रसिद्ध है. बाबर के बाद के मुगल बादशाहों में शाही रसोई में रुचि ली. इसमें अकबर सबसे आगे थे. उन्होंने रसोई प्रशासन के लिए ऊंचे पद पर अधिकारी रखे.

फ्रांसीसी यात्री बर्मर कहते हैं, मुगल सम्राट जब यात्रा करते थे तो उनका रसोई विभाग भी पूरे लावलश्कर के साथ उनके साथ होता था या उनसे पहले ही उस जगह पहुंच चुका होता था. मुगल खाने के बहुत शौकीन थे. भोजन उनके लिए महत्वपूर्ण था. इसलिए जब सम्राट कहीं जाता था तो सबसे पहले उनकी रसोई को ट्रांसफर किया जाता था.

‘एक इतालवी यात्री मनुची ने लिखा, यह दरबार की प्रथा थी कि सम्राट के जाने से पहले रात के दस बजे शाही रसोई उस जगह के लिए रवाना कर दी जाती थी. ताकि ये पक्का हो सके कि अगली सुबह सम्राट के आने तक शाही नाश्ता तैयार हो जाए.

सलमा हुसैन की किताब “द एम्परर्स टेबल – द आर्ट ऑफ मुगल कुजीन” में मुगल बादशाहों की शाही रसोई और उनके खाने के तौरतरीकों के बारे में विस्तार से बताया गया है.

कैसे चलता था शाही रसोई का लाव-लश्कर

रसोई विभाग को 50 ऊंट दिए जाते थे, जो रसोइयों को ढोते हैं, दूध देने के लिए 50 अच्छी हृष्ट-पुष्ट गायें साथ चलती थीं. 200 से ज्यादा कुली चीनी मिट्टी के बर्तन और अन्य परोसने वाले व्यंजनों को लेकर चलते थे. खाना पकाने के बर्तन ले जाने के लिए कई खच्चर होते थे. इसके अलावा उनके साथ पर्याप्त खाद्य सामग्री और स्वादिष्ट व्यंजन भी होते थे. हर रसोइए से एक व्यंजन की अपेक्षा की जाती थी. केवल इतना ही नहीं इस लाव लश्कर के साथ एक सैन्य टुकड़ी पानी ढोने वालों, सफाईकर्मियों, चमड़े के काम करने वालों और मशाल ढोने वालों के साथ शाही रसोई की रखवाली करती हुई चलती थी.

अकबर के दरबारी अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखित “आइन-ए-अकबरी” अकबर के शासन के हर पहलू का विवरण देता है. इसमें शाही रसोई पर जानकारी देने के लिए पूरा अध्याय है. इस अध्याय में कुछ व्यंजनों की रेसिपी की एक सूची भी. बर्नियर ने लिखा है कि कैसे तब दुकानें घी, चावल, गेहूँ और अनगिनत बर्तनों से भरी रहती थीं.

मीर बकावल था रसोई प्रमुख, 600 घोड़ों का पद

अबुल फजल लिखते हैं कि रसोई विभाग का नेतृत्व मीर बकावल करता था, जिसको रसोई प्रमुख का पद मिला हुआ था. रसोई प्रमुख का पद 600 घोड़ों का होता था. अकबर के शासनकाल में हकीम हमाम, प्रधान मंत्री को भी इतने घोड़ों की सेना रखने की अनुमति थी.

मीर बकावल के अधीन रसोइयों, चखने वालों, परिचारकों, रसोइयों और लावलश्कर ले जाने के लिए एक सेना थी. लिहाजा जब भी शाही रसोई कहीं ट्रांसफर होती थी तो 600 घोड़ों की सेना भी उनकी सुरक्षा में चलती थी.

शाही रसोई में फारस, अफगानिस्तान और भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले प्रतिष्ठित रसोइये रहते थे, जो सम्राट के स्वभाव और परोसे जाने वाले भोजन की पौष्टिकता को ध्यान रखते हुए रोज का खाना तैयार करते थे.

हकीम की सलाह से तैयार होते थे व्यंजन

अपच, पेट दर्द के इलाज, कामुक भावनाओं को जगाने और सम्राट की जीवन शक्ति बढ़ाने के लिए कई व्यंजन विधियां वारियल हकीम द्वारा दी जाती थीं. औषधीय गुणों से युक्त इन नुस्खों से बुद्धि तेज होती थीं, आंखें तेज और त्वचा में चमक के साथ सुनने की शक्ति बढ़ती थी. हकीम के नुस्खों के अनुसार ही रसोइए अपने व्यंजन तैयार करते थे.

किन मसालों का इस्तेमाल, खूब ड्राईफ्रूट्स

मुगल सम्राटों के शाही रसोईघरों के हस्तलिखित विवरण से पता चलता है कि खाना पकाने में जीरा, धनिया, अदरक, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, सौंफ जैसे बहुत कम मसालों का इस्तेमाल किया जाता था. व्यंजनों को शाही मेज लायक बनाने के लिए उसमें मेवे और किशमिश का खूब इस्तेमाल होता था. नींबू के रस के साथ चीनी और केसर का इस्तेमाल करीब हर व्यंजन में होता ही था.

बादाम का प्रयोग न केवल व्यंजन को गाढ़ा बनाने के लिए किया जाता था, बल्कि स्वाद को समृद्ध करने और मन और शरीर को शक्ति देने के लिए भी किया जाता था.

रसोई के लिए अलग और मोटा बजट

शाही रसोईघर का एक अलग लेखा विभाग था. ये शाही रसोई के रोजाना के खर्च को देखता था और पैसे जारी करता था. तब राजा के भोजन के खर्च के लिए 1000 रुपये दिए जाते थे.

मांस के लिए जानवरों को सुगंधयुक्त घास और भोजन

शाही रसोई के लिए विदेशों से भी खाद्य सामग्री आती थी, जैसे – काबुल से फल, बत्तख, पानी के मुर्गे और कुछ सब्जियां. पानी गंगा नदी का ही इस्तेमाल होता थआ. भेड़, बकरियों और मुर्गियों को रसोई स्टोर में रखा जाता था. जानवरों से सुखद महक वाले मांस प्राप्त करने के लिए उन्हें सुगंधित जड़ी-बूटियों, चांदी, सोना, मोती, चीनी के साथ मिश्रित केसर के कंचे, सुगंधित घास से मिलाकर विशेष आहार दिया जाता था.

गायों को सुगंधित हरी घास के अलावा कपास के बीज, गन्ना, जायफल, नारियल, दालचीनी, दालें, तीतर के अंडे और बांस के पत्ते खिलाए जाते थे. उन्हें कभी भी एक महीने से कम समय तक नहीं रखा जाता था। चावल भटनी, ग्वालियर, राजोरी और निमलाह से आता था.

भोजन बादाम के तेल, भेड़ की पिघली हुई चर्बीदार पूंछ से मिली चर्बी, खुबानी के तेल और अंगूर के बीजों के तेल में पकाया जाता था. घी को केसर, पालक और हल्दी से अलग-अलग रंग दिया जाता था. भोजन को गुलाब जल, कस्तूरी और अन्य सुगंधियों से सुगंधित किया जाता था.

कौन सा मांस सम्राटों को पसंद

मुगल सम्राट स्वभाव से मांसाहारी थे. शिकार उनकी जीवनशैली भी थी क्योंकि यह उन्हें युद्ध के लिए तंदुरुस्त और प्रशिक्षित रखता था. राजाओं और शासकों से अपेक्षा की जाती थी कि वे योद्धा और शिकारी के रूप में उत्कृष्ट हों. अपनी असंख्य पत्नियों और रखैलों के साथ अपनी प्रबल यौन शक्ति का प्रदर्शन भी करें.

भेड़ का मांस, शिकार और पक्षियों के अलावा बकरी का मांस सबसे पसंदीदा था. सोने-चांदी के साथ-साथ मोतियों और अन्य कीमती पत्थरों का उपयोग उनके औषधीय गुणों के अनुसार खाना पकाने में किया जाता था. मछली को गंध रहित बनाने के लिए इसमें नमक मिलाकर लगाया जाता था.

ताकि मांस से दुर्गंध नहीं आए

ताज़े नींबू के पत्तों, इलायची, लौंग, नींबू के रस और नमक का पेस्ट बनाकर रात भर रखा जाता था. फिर बड़ी कुशलता से पकाया जाता था ताकि कोई हड्डी न बचे. इसी तरह शिकारी पक्षियों को मारकर पकाने के लिए तैयार किया जाता था. दुर्गंध दूर करने के लिए उन पर चंदन का लेप लगाया जाता था. स्मोक्ड, ग्रिल्ड और बारबेक्यू किया हुआ मांस सम्राटों की मेज़ की शोभा बढ़ाता था. शिकार करने वाले पक्षियों और जानवरों को चावल, सूखे मेवे और अंडों से भरकर पौष्टिक भोजन बनाया जाता था. बाद में इस पाक-शैली को एक परिष्कृत रूप दिया गया.

शाही रसोई उगाता था सब्जियां

शाही रसोई के पास एक जगह चिन्हित की गई थी, जहां सम्राट द्वारा पसंद की जाने वाली सब्ज़ियां विशेष देखभाल के साथ उगाई जाती थीं. सब्जियों की क्यारियों को गुलाब जल और कस्तूरी से सींचा जाता था ताकि एक विशेष सुगंध आए.


.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.

https://hindi.news18.com/news/knowledge/why-did-mughal-emperor-akbar-kitchen-chief-travel-with-an-army-of-600-horses-know-about-royal-kitchen-ws-kl-9948741.html

Hot this week

Aniruddhacharya controversy। अनिरुद्धाचार्य विवादित बयान

Aniruddhacharya Controversy : धार्मिक मंच हमेशा से लोगों...

hair washing frequency। हफ्ते में बाल धोने का सही तरीका

Hair Wash Tips: बाल हमारे व्यक्तित्व और सुंदरता...

Topics

Aniruddhacharya controversy। अनिरुद्धाचार्य विवादित बयान

Aniruddhacharya Controversy : धार्मिक मंच हमेशा से लोगों...

hair washing frequency। हफ्ते में बाल धोने का सही तरीका

Hair Wash Tips: बाल हमारे व्यक्तित्व और सुंदरता...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img