Friday, December 19, 2025
30 C
Surat
[tds_menu_login inline="yes" guest_tdicon="td-icon-profile" logout_tdicon="td-icon-log-out" tdc_css="eyJhbGwiOnsibWFyZ2luLXJpZ2h0IjoiNiIsIm1hcmdpbi1ib3R0b20iOiIwIiwibWFyZ2luLWxlZnQiOiIyNSIsImRpc3BsYXkiOiIifSwicG9ydHJhaXQiOnsibWFyZ2luLXJpZ2h0IjoiMiIsIm1hcmdpbi1sZWZ0IjoiMTYiLCJkaXNwbGF5IjoiIn0sInBvcnRyYWl0X21heF93aWR0aCI6MTAxOCwicG9ydHJhaXRfbWluX3dpZHRoIjo3NjgsImxhbmRzY2FwZSI6eyJtYXJnaW4tcmlnaHQiOiI1IiwibWFyZ2luLWxlZnQiOiIyMCIsImRpc3BsYXkiOiIifSwibGFuZHNjYXBlX21heF93aWR0aCI6MTE0MCwibGFuZHNjYXBlX21pbl93aWR0aCI6MTAxOX0=" icon_color="#ffffff" icon_color_h="var(--dark-border)" toggle_txt_color="#ffffff" toggle_txt_color_h="var(--dark-border)" f_toggle_font_family="global-font-2_global" f_toggle_font_transform="uppercase" f_toggle_font_weight="500" f_toggle_font_size="13" f_toggle_font_line_height="1.2" f_toggle_font_spacing="0.2" ia_space="0" menu_offset_top="eyJhbGwiOiIxNCIsInBvcnRyYWl0IjoiMTIiLCJsYW5kc2NhcGUiOiIxMyJ9" menu_shadow_shadow_size="16" menu_shadow_shadow_color="rgba(10,0,0,0.16)" f_uh_font_family="global-font-1_global" f_links_font_family="global-font-1_global" f_uf_font_family="global-font-1_global" f_gh_font_family="global-font-1_global" f_btn1_font_family="global-font-1_global" f_btn2_font_family="global-font-1_global" menu_uh_color="var(--base-color-1)" menu_uh_border_color="var(--dark-border)" menu_ul_link_color="var(--base-color-1)" menu_ul_link_color_h="var(--accent-color-1)" menu_ul_sep_color="#ffffff" menu_uf_txt_color="var(--base-color-1)" menu_uf_txt_color_h="var(--accent-color-1)" menu_uf_border_color="var(--dark-border)" show_version="" icon_size="eyJhbGwiOjIwLCJwb3J0cmFpdCI6IjE4In0=" menu_gh_color="var(--base-color-1)" menu_gh_border_color="var(--dark-border)" menu_gc_btn1_color="#ffffff" menu_gc_btn1_color_h="#ffffff" menu_gc_btn1_bg_color="var(--accent-color-1)" menu_gc_btn1_bg_color_h="var(--accent-color-2)" menu_gc_btn2_color="var(--accent-color-1)" menu_gc_btn2_color_h="var(--accent-color-2)" f_btn2_font_size="13" f_btn1_font_size="13" toggle_hide="yes" toggle_horiz_align="content-horiz-center" menu_horiz_align="content-horiz-center" f_uh_font_weight="eyJsYW5kc2NhcGUiOiI3MDAiLCJhbGwiOiI3MDAifQ==" f_gh_font_weight="700" show_menu="yes" avatar_size="eyJhbGwiOiIyMiIsImxhbmRzY2FwZSI6IjIxIiwicG9ydHJhaXQiOiIxOSJ9" page_0_title="My Articles" menu_ul_sep_space="0" page_0_url="#"]

फूड डिप्लोमेसी से अकबर ने जोड़ा तो औरंगजेब ने लोगों को दूर किया, शाहजहां दिखाता था इससे ताकत


मुगल बादशाहों के लिए खाना सिर्फ़ स्वाद या शौक नहीं था, बल्कि सत्ता, संस्कृति और कूटनीति का भी अहम हिस्सा था. फूड डिप्लोमेसी करना एक तरह से उन्होंने ही इस देश को सिखाया. मुगल दरबार में दी जाने वाली दावतें ये भी बताती थीं कि मुगल बादशाहों के कौन कितना करीब है. अब उनकी राजनीति और रणनीति क्या होने वाली है. वो क्या चाहते हैं. वैसे तो सभी मुगल राजाओं ने अपने अपने अंदाज में फूड डिप्लोमेसी को अंजाम दिया लेकिन शायद इस काम में अकबर सबसे माहिर था.

मुगल फूड डिप्लोमेसी आधुनिक “गैस्ट्रो डिप्लोमेसी” का ही पुराना रूप थी. इसके लिए खूब तैयारियां होती थीं. खानपान की चीजें वो अगर तोहफों में देते थे तो उतनी ही खुशी से स्वीकार भी करते थे. मुगलों के लिए शाही दावतें कूटनीतिक मंच थीं. एक तरह से दरबार में पसंद – नापसंद और प्रोटोकॉल का भी प्रदर्शन.

अकबर की फूड डिप्लोमेसी सबसे अलग

अकबर ने दावतों का इस्तेमाल धर्म और जाति की दीवारों को तोड़ने के लिए किया. उसकी दावतें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक होती थीं. ये वो दौर भी था जबकि अकबर का शाही किचन तमाम भारतीय खानों को अपने अंदाज में ढाल रहा था.

अगर शाही किचन में घी, दाल और चावल के आमद राजपूत प्रभाव को जाहिर करने लगी थी तो जैन असर से कई बार ये रसोई मांस के खानों को बनाने से दूर रहती थी. तो फारसी और भारतीय प्रभाव ने मिलकर मुगलई भोजन की आधारशिला रखी.

अकबर के दरबारी और खास अबुल फजल ने “आइन ए अकबरी” में लिखा है कि दस्तरख्वान पर बैठने की जगह, व्यंजनों का परोसना और ये कितना परोसा जाएगा, ये उस व्यक्ति के दर्जे पर निर्भर करती थी.
करीबी लोग यानि नवरत्न, बड़े अमीर और राजपूत सरदार बादशाह के पास बैठते थे, इसके जरिए ये दिखाया जाता था कि ये लोग बादशाह के विश्वास वाले करीबी लोग हैं. दावतें विदेशी मेहमानों और बाहर से आए बड़े लोगों को प्रभावित करने के लिए भी होती थीं. इनके जरिए मुगल साम्राज्य अपने वैभव का प्रदर्शन करता था. वैसे अकबर के बारे में कहा जाता है कि वो अपने रोजाना का भोजन अकेले ही करता था, जब दावतें देता था तो पूरी तैयारी के साथ देता था. वहां वो ऊंचे सिंहासन पर बैठा करता था.

जहांगीर से औरंगजेब तक क्या हुआ

जहांगीर के समय फूड डिप्लोमेसी व्यक्तिगत नेटवर्किंग में बदली. हर कोई दावत में नहीं बुलाया जाता था. शाही शराब और व्यंजन सिर्फ़ खास लोगों को मिलता था. तब जो बादशाह के भोज समारोह में शामिल किया जाता था, उसे सत्ता के करीब माना जाता था. जहांगीर ने खुद लिखा है कि वह किसे दावत में बुलाता था और किसे नहीं.

शाहजहां भव्य भोज समारोहों के जरिए राजनीतिक प्रदर्शन करता था. मेगा दावतें देता था. जिसमें सैकड़ों व्यंजन होते थे. सोने-चांदी के बर्तनों में वो परोसे जाते थे. विदेशी मेहमान तो इसे देखकर ही चकाचौंध हो जाता था. यूरोपीय यात्रियों ने इन दावतों को “राजसी ओवरडोज़” कहा.

मुगल बादशाह जहांगीर और शाहजहां भी करीबी अमीरों, परिवार के सदस्यों और उच्च रैंक वाले लोगों को पास बिठाते थे. बैठने की जगह रैंक, वफादारी और राजनैतिक महत्व पर निर्भर करती थी, ये सबसे करीब वाली जगह सबसे बड़ा सम्मान होती थी.

औरंगजेब के समय में खाना धार्मिक और नैतिक सीमा का प्रतीक माना गया. दरबार की दावतें सीमित और सादगी वाली होती थीं. संगीत, शराब और भव्य भोज समारोह करीब खत्म ही हो गए थे. वह खुद भी निजी जीवन में सादा भोजन करता था. औरंगज़ेब ने शाही खर्चों में कटौती की. .

जब शाही रसोई से किसी को खाना भेजा जाता था

बादशाह की रसोई से लोगों को भेजा जाने वाला खाना भी एक तरह से डिप्लोमेसी का प्रदर्शन होता था. जिन लोगों के घरों में शाही रसोई से खाना भेजा जाता था, उसका मतलब होता था कि उन पर मुगल बादशाहों की खास कृपा है. मुगल भोजन को उपहार के रूप में भेजकर मित्रता, शक्ति और सद्भाव का संदेश देते थे.

वैसे ये कहा जाता है कि मुगल बादशाह की किचन अक्सर ऐसा खाना भी बनाती थी, जो दरबारियों, सैनिकों और आम जनता तक वितरित होता था.

फल और पकवानों के तोहफे

आम, तरबूज, अंगूर और मीठे पकवान गिफ्ट के रूप में दिए जाते थे. फलों को राजनैतिक प्रोटोकॉल का हिस्सा माना जाता था. हुमायूं और जहांगीर आम के बहुत शौकीन थे. लिहाजा वो इसे गिफ्ट करके बहुत खुश भी होते थे. जिसे गिफ्ट करते थे, उसे लगता था कि बादशाह व्यक्तिगत तौर पर उसे खास मानता है. कहा जाता है कि बाबर को जब फल गिफ्ट दिया जाता था तो वह बहुत खुश होता था. अगर उसे सेंट्रल एशिया से आने वाले व्यापारी उसके लिए तरबूजा और खरबूजा देते थे, तो वो खासतौर पर बहुत खुश हो जाता था, क्योंकि ये तोहफा उसको उसकी मध्य एशियाई जड़ों की याद दिलाता था.

मुगलों के पास ईरान से आने वाली शराब, काबुल से आने सूखे मेवे और फल और कश्मीर की केसर भी फूड डिप्लोमेसी का हिस्सा होती थी. उस समय ये सारी चीजें बेशकीमती मानी जाती थीं, उन्हें जब मुगल शहंशाह गिफ्ट में देता था तो ये भी जताता था कि वो उन्हें खास तोहफा दे रहा है.

कौन कैसी दावत पसंद करता था

बाबर फलों और ग्रिल्ड मीट की दावतें पसंद करता था, जो उसकी मध्य एशियाईआ जड़ों से जुड़ी थी. हुमांयू ईरान में शरण लेते समय फारसी दावतों से प्रभावित हुआ था, जब वह भारत लौटा और उसने गद्दी संभाली तो उसने उसी शैली की दावतों को अपनाया.

मुगलों और ब्रिटिशर्स दोनों ने फूड डिप्लोमेसी की लेकिन मुगलों ने अगर भोजन से लोगों को सत्ता के भीतर खींचा, ब्रिटिशों ने भोजन से लोगों को सत्ता से दूर रखा. मुगलई खाना अब भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन चुका है.

दावतों में परोसी जाने वाली डिशेस

मुगल दावतें आलीशान होती थीं. इसमें 50 से 100 या और ज्यादा डिशेज होती थीं. आइन-ए-अकबरी के अनुसार इन दावतों में कई तरह बिरयानी, कोरमा, कई तरह के कबाब, मुर्ग मुसल्लम, भारतीय असर से बनाया गया नवरतन कोरमा, खिचड़ी, हलीम, कई तरह की मिठाइयां जैसे हलवा, फालूदा, शाही टुकड़ा, गुलाब जामुन, फिरनी होती थीं.

जोधाबाई के प्रभाव से अकबर की शाही किचन ने पंचमेल दाल बनानी शुरू की थी. दावत में कई तरह को रोटियां, नान, दम पुख्त स्टाइल भी जरूर होता था. अकबर के ही राज में कुल्फी और शरबत को विकसित किया गया था, जो लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे. मुगलों की दावत में वैसे कई पक्षियों का भी गोश्त होता था, क्योंकि मुगलों का पसंदीदा था. अकबर ज्यादातर शाकाहारी हो गए थे, इसलिए उनकी दावतों में वेज डिशेज ज्यादा रहने लगी थी. दावतों में गंगा का पानी पीने को मिलता था.

सोर्स
1. बाबरनामा – बाबर की आत्मकथा
2. आइन-ए-अकबरी – अबुल फजल द्वारा
3. तुजुक-ए-जहांगीरी – जहांगीर के संस्मरण वाली किताब
4. “A History of Mughal Cuisine through Cookbooks” (The Heritage Lab)
5. Food in the Domain of Politics” (Enroute Indian History)
6. “Mughal Conquests and Diplomacy Wrapped in a Love of Mangoes” (Dhaara Magazine) – मैंगो डिप्लोमेसी के ऐतिहासिक उदाहरण


.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.

https://hindi.news18.com/news/knowledge/akbar-mughal-food-diplomacy-foster-connections-aurangzeb-distanced-people-shah-jahan-display-his-power-ws-kl-9975305.html

Hot this week

Topics

Fire Element Psychology। निर्णय लेने में परेशानी

Elements Psychology: कई बार लोग कहते हैं कि...

How to Make Crispy Rice Flour Chips at Home. Easy Tea Time Snack

Last Updated:December 19, 2025, 11:00 ISTHow to Make...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img