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ताज होटल के अनुभवी कारीगर अब्दुल करीम बताते हैं कि इस खास ‘मटन पाया’ को तैयार करने में लगभग 6 से 7 घंटे का समय लगता है. करीब 30 तरह के गरम मसालों के मिश्रण से तैयार यह डिश अपने अनोखे स्वाद के लिए मशहूर है.
धनबाद. धनबाद का झरिया सिर्फ कोयले की खान के लिए ही नहीं, बल्कि अपने खास व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के ताज होटल का मटन पाया पिछले 50 साल से लोगों के स्वाद का केंद्र बना हुआ है. इस मटन पाया की लोकप्रियता ऐसी है कि धनबाद के अलावा बोकारो, गिरिडीह आसनसोल और पश्चिम बंगाल के कई जिलों से भी लोग खास तौर पर इसका स्वाद लेने ताज होटल पहुंचते हैं.
ताज होटल के अनुभवी कारीगर अब्दुल करीम बताते हैं कि इस खास ‘मटन पाया’ को तैयार करने में लगभग 6 से 7 घंटे का समय लगता है. पहले पाया को आग में करीब ढाई घंटे तक भूनकर नरम किया जाता है, उसके बाद इसे अच्छी तरह से साफ कर मसालों में पकाया जाता है. करीब 30 तरह के गरम मसालों के मिश्रण से तैयार यह डिश अपने अनोखे स्वाद के लिए मशहूर है. प्रतिदिन 200 से ज्यादा पाए की खपत होती है और इसकी कीमत ₹160 प्रति पीस है.
कैल्शियम की कमी होती है दूर
उन्होंने बताया कि एक बड़े टप (ड्रम) में पाया पकाने को 25 किलो प्याज, जैतून का तेल और लगभग 2 किलो सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है. मसालों की महक और धीमी आंच पर लंबे समय तक पकने की वजह से इसका स्वाद बेहद लाजवाब बनता है.
ताज होटल का संचालन कर रहे मोहम्मद कलाम बताते हैं कि यह दुकान 1956 से चल रही है. मटन पाया की खासियत केवल स्वाद ही नहीं, बल्कि उसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं. उनका दावा है कि इसे खाने से शरीर में कैल्शियम की कमी दूर होती है. जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है और यह टीबी के मरीजों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है. खासतौर पर बुजुर्ग इस डिश को अमृत’ की तरह मानते हैं.
पहले हैदराबाद से आता था पाया
यह स्वादिष्ट मटन पाया केवल ठंड के मौसम में ही उपलब्ध होता है. त्योहार छठ से लेकर होली तक के तीन महीनों में ही इसकी बिक्री होती है. कलाम बताते हैं कि शुरुआती दौर में इसके दो पीस की कीमत सिर्फ ₹2 हुआ करती थी, लेकिन समय के साथ महंगाई बढ़ने पर आज यह ₹160 तक पहुंच गया है.
पहले हैदराबाद से हवाई मार्ग द्वारा पाया मंगाया जाता था, जबकि अब कोलकाता की मंडियों से ट्रेन द्वारा सप्लाई होती है. झारखंड में जो बकरियों के पाए इस्तेमाल किए जाते हैं. उनका वजन लगभग 10 किलो का होता है. जबकि कोलकाता और हैदराबाद से मिलने वाले पाए 30 किलो की तंदुरुस्त बकरियों के होते हैं, जिनकी हड्डियों में कैल्शियम भरपूर होता है.
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