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उत्तराखंड की पहाड़ियों में रसोई सिर्फ खाना बनाने की जगह नहीं, बल्कि परंपरा, स्वाद और संस्कृति का संगम है. यहां हर व्यंजन में मेहनत, सादगी और प्रकृति से जुड़ाव झलकता है. ऐसी ही एक खास डिश है ‘झोई’, जो पीढ़ियों से पहाड़ी खानपान का अहम हिस्सा रही है. यह व्यंजन न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि पौष्टिक और सर्द मौसम के लिए बेहद फायदेमंद भी मानी जाती है.

पहाड़ों की रसोई में परंपरा और स्वाद का अनोखा संगम देखने को मिलता है. यहां के लोगों का खान-पान न केवल पौष्टिक होता है बल्कि मौसम और मेहनत भरी दिनचर्या के अनुसार भी ढला हुआ है. ऐसी ही एक खास डिश है ‘झोई’, जिसे गेहूं के आटे से बनाया जाता है. जहां मैदानी इलाकों में लोग बेसन का इस्तेमाल करते हैं, वहीं पहाड़ी रसोई में यही भूमिका गेहूं का आटा निभाता है.

झोई का इतिहास सदियों पुराना है और यह उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है. पहले जब बाजार की सुविधा नहीं थी, तब पहाड़ों के लोग घर में उपलब्ध सामग्री से ही भोजन तैयार करते थे. गेहूं का आटा हर घर में आसानी से मिल जाता था, इसलिए ‘झोई’ का चलन शुरू हुआ. आज भी गांवों में बुजुर्ग महिलाएं बड़े प्यार से झोई बनाती हैं और इसे पारंपरिक स्वाद के रूप में आगे बढ़ा रही हैं.

झोई बनाना बेहद आसान और दिलचस्प होता है. सबसे पहले गेहूं के आटे को पानी में घोलकर पतला घोल तैयार किया जाता है. फिर इसे धीमी आंच पर पकाया जाता है ताकि गांठें न बनें. इसके बाद इसमें दही, लहसुन, जाख्या या राई का तड़का डाला जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी लाजवाब हो जाता है. झोई का गाढ़ापन और उसकी खुशबू ही इसे खास बनाते हैं.

झोई का स्वाद हल्का खट्टापन लिए होता है, जो दही और तड़के की वजह से आता है. इसका टेक्सचर मुलायम और गाढ़ा होता है, जिसे खाने में सुकून का एहसास होता है. इसे गरमागरम चावल या मंडुए की रोटी के साथ परोसा जाता है. पहाड़ की ठंडी हवाओं में झोई का गरम कटोरा शरीर और मन दोनों को गर्माहट देता है.

झोई न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है. गेहूं का आटा ऊर्जा का बेहतरीन स्रोत होता है और इसमें फाइबर की मात्रा भी अधिक होती है. दही से इसमें प्रोबायोटिक्स जुड़ जाते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं. ठंडे मौसम में झोई शरीर को गर्म रखने में मदद करती है. यही वजह है कि यह पहाड़ी लोगों की रोज़मर्रा की डाइट का अहम हिस्सा रही है.

झोई सिर्फ रोजमर्रा का भोजन नहीं, बल्कि पर्व-त्योहारों का भी अहम हिस्सा होती है. विशेष रूप से सर्दियों के त्योहारों में इसे बड़े चाव से बनाया जाता है. गांवों में जब परिवार एक साथ बैठकर खाना खाते हैं, तो झोई हर किसी की थाली में होती है. यह सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि लोगों के आपसी अपनापन और परंपरा का प्रतीक भी है.

आज जब फास्ट फूड और इंस्टेंट खाने का दौर है, तब भी झोई अपनी जगह बनाए हुए है. शहरों में रहने वाले पहाड़ी लोग जब घर लौटते हैं, तो झोई का स्वाद उन्हें अपने बचपन की याद दिला देता है. अब कुछ लोग इसमें नई सामग्री जैसे सब्जियां या मसाले जोड़कर इसका आधुनिक रूप भी तैयार कर रहे हैं, लेकिन इसकी आत्मा आज भी उतनी ही पारंपरिक और सुकून देने वाली है.
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