Surguja News: बेंगचा भाजी नाम सुनने में जरूर आपको अनोखा लग रहा होगा, लेकिन ये भाजी सेहत के लिए बहुत लाभकारी मानी जाती है. जंगलों और नदी किनारे उगने वाली जंगली सब्जी आज भी ग्रामीणों के लिए एक औषधि साबित हो रही है. लोग इसे अपने घरों में उगाने के बाद बाजारों में नहीं बेचते, क्योंकि इसमें स्वाद और सेहत दोनों का खजाना छिपा है. यही वजह है कि लोग आमतौर पर इसे सब्जी और चटनी में इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनके पाचन और कई सारी बीमारीयो से छुटकारा मिलता है. बता दें कि नदी किनारे मेंढक रहते हैं, उसको गांव देहात में बेंगचा कहते हैं और ये सब्जी उसी जगह उगती है तो लोग इसे बेंगचा भाजी के नाम से जानते हैं.
बीपी और शुगर में फायदेमंद ये भाजी
सिकंदर प्रजापति ने बताया कि ग्रामीण मान्यताओं और पारंपरिक अनुभवों के अनुसार, बेंगचा भाजी का नियमित सेवन ब्लड प्रेशर (बीपी) और मधुमेह (शुगर) को नियंत्रण में रखता है. आदिवासी समुदायों में यह आमतौर पर भोजन का हिस्सा है. कहा जाता है कि जिन लोगों के आहार में यह भाजी शामिल रहती है, उनमें इन बीमारियों की संभावना बहुत कम रहती है.
चटनी देती है असली स्वाद
किशोर एक्का ने Bharat.one को बताया कि गांवों में लोग आज भी मिक्सी की बजाय पारंपरिक शील-लोढ़ा का इस्तेमाल करते हैं. लहसुन, प्याज, अदरक और मिर्च के साथ पीसी गई बेंगचा भाजी की चटनी स्वाद में अद्भुत होती है. यह पाचन शक्ति बढ़ाने और भूख लगाने में भी सहायक मानी जाती है. सूखी सब्जी के रूप में पकाने पर इसका हल्का कड़वा स्वाद सरसों की भाजी से भी बेहतर माना जाता है.
घर पर भी उगाई जा सकती है ये भाजी
सिकन्दर प्रजापति बताते हैं कि यह भाजी अधिकतर घास-फूस और नमी वाली जगहों पर पाई जाती है, लेकिन इसकी जड़ को निकालकर घर के आसपास भी लगाया जा सकता है. इसका स्थानीय नाम ‘बेंगचा’ मेंढक से जुड़ा है ,दरअसल, यह अक्सर उन्हीं स्थानों पर उगती है जहां मेंढक पाए जाते हैं, इसलिए गांवों में कहा जाता है कि जहां बेंगचा है, वहां प्रकृति और जीवन दोनों मौजूद हैं.
कीमत में भी खास
सिकंदर के मुताबिक बाजारों में बेंगचा भाजी की कीमत ₹500 से ₹1000 प्रति किलो तक बताई जाती है. इसके बावजूद ग्रामीण लोग इसे बेचने की बजाय खुद खाना पसंद करते हैं. उनके लिए यह सिर्फ एक सब्जी नहीं, बल्कि परंपरा और स्वास्थ्य दोनों का प्रतीक है. बेंगचा भाजी आदिवासी समाज की परंपरा, स्वाद और स्वास्थ्य का एक सुंदर संगम है. आधुनिक युग में जब लोग ऑर्गेनिक और प्राकृतिक आहार की ओर लौट रहे हैं, तब यह जंगली भाजी हमें प्रकृति से जुड़ने और अपनी जड़ों को पहचानने का अवसर देती है.
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