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Health tips : चतुर लोग खाते हैं इस पत्ते पर खाना, जिसके पास थोड़ा भी दिमाग, जरूर जानता होगा – Uttarakhand News


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Maalu leaf benefits : उत्तराखंड के व्यजंन लोगों को बेहद पसंद आते हैं. ऐसे ही एक मिठाई है सिंगौड़ी. पुरानी टिहरी आज भले ही झील में डूबा शहर है, लेकिन यहां की एक मिठाई का स्वाद आज भी वैसा ही है. सिंगौड़ी को एक खास तरह के पत्तों से लपेटकर तैयार किया जाता है. इसकी बनावट और स्वाद बहुत अलग है. इस मिठाई को खाने का अलग ही सुख है और इस सुख की वजह है एक पत्ता.

Maalu Leaf Uttarakhand

सिंगौड़ी बनाने और इसे मालू के पत्ते से कवर करने का तरीका अनूठा है. मालू के पत्ते से इसको पुराना स्वाद मिलता है. इस पत्ते का उपयोग सदियों से होता आ रहा है. पुराने समय में पत्तों पर भोजन किया जाता था क्योंकि इसके औषधीय लाभ सेहत को मिलते हैं. इस पत्ते में 23.26 फीसद लिपिड, 24 फीसद प्रोटीन और 6.2 फीसद फाइबर होता है. यह अन्य प्लास्टिक और डिस्पोजल प्लेट से बेहतर है क्योंकि इससे पर्यावरण भी स्वच्छ रहता है.

Maalu Leaf Uttarakhand

आधुनिकता के इस दौर में ग्राहकों को कुछ नया देने की होड़ ने प्लास्टिक और डिस्पोजल की प्लेट और दोनों का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन आज भी कुछ जगहों पर मालू के पत्तों और इनसे बनी प्लेट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. उत्तराखंड की मशहूर मिठाई सिंगौड़ी आज भी मालू के पत्ते में लपेटकर दी जाती है.

Maalu Leaf Uttarakhand

देहरादून के रहने वाले महेश बड़ौनी बताते हैं कि औषधीय गुणों से भरपूर और पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाने वाले मालू के पत्तों को वेद-पुराणों में शुद्ध और शुभ माना गया है. उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में आज भी इस पत्ते का खूब उपयोग किया जाता है. साधु-संत इस पत्ते को बेहद शुद्ध मानते हैं. किसी भी संस्कार में इसका इस्तेमाल जरूर किया जाता है. देहरादून में मशहूर बन टिक्की को द्वारिका स्टोर, रतन चाट भंडार पर आप मालू के पत्तों पर आज भी इनका स्वाद ले सकते हैं.

Maalu Leaf Uttarakhand

महेश के अनुसार, मालू का पत्ता प्लास्टिक डिस्पोजल आइटम्स का बेहतर विकल्प बन सकता है. पहाड़ों में मालू के पेड़ काफी संख्या में मौजूद हैं और अगर सरकार इस ओर ध्यान दे, तो हमें प्लास्टिक डिस्पोजल से छुटकारा मिल सकता है. इससे स्थानीय लोगों को भी रोजगार से जोड़ा जा सकता है. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाला मालू एक सदाबहार पेड़ है.

Maalu Leaf Uttarakhand

प्रदेश के पहाड़ी जिलों में भी काफी संख्या में मालू के पेड़ पाए जाते हैं. पहाड़ों में पहले शुभ अवसरों पर मेहमानों को मालू के पत्तों पर ही भोजन कराया जाता था. आज भी कुछ जगहों पर पुरानी रवायत चली आ रही है. इसका पत्ता स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है. इसे लता काचनार भी कहा जाता है. उत्तराखंड के अलावा पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी पाया जाता है लेकिन पहाड़ी जिलों में यह एक सदाबहार लता है जिसके पत्ते बड़े, मजबूत और लचीले होते हैं, इसलिए इससे दोने तैयार किए जाते हैं.

Maalu Leaf Uttarakhand

मालू के पत्ते, बीज और छाल में औषधीय गुण होते हैं. इसके बीजों में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं और इन्हें खांसी, जुकाम और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने में भी उपयोग किया जाता है. इसके मजबूत पत्तों से दालों के भंडारण के लिए ‘ख्वाका’ और वर्षा से बचाव के लिए ‘मौना’ भी तैयार किया जाता था. उत्तराखंड की प्रसिद्ध मिठाई सिंगौड़ी को भी इसी पत्ते में पैक की जाती है.

Maalu Leaf Uttarakhand

मालू के पत्ते की खास बात यह होती है कि यह जल्दी सड़ता नहीं है. मजबूत होता है और अगर इससे प्लेट या कोई डिस्पोजल तैयार किया जाता है तो यह लंबे समय तक सही सलामत रह सकता है. इससे अगर खाना पैक किया जाता है तो यह प्लास्टिक और एलुमिनियम फॉयल के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित रहता है.

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चतुर लोग खाते हैं इस पत्ते पर खाना, जिसके पास थोड़ा भी दिमाग, जानता होगा


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