इसी, वजह से आज भी गांवों और कस्बों में मिक्सी और ग्राइंडर होने के बावजूद लोग चटनी बनाने के लिए सिलबट्टे का ही इस्तेमाल करते हैं. यह न सिर्फ स्वाद बढ़ाता है, बल्कि परंपरा और संस्कृति की भी याद दिलाता है.
बलिया निवासी बुज़ुर्ग विद्यावती देवी कहती हैं, ‘सिलबट्टे की चटनी पुराने जमाने की पहचान है.’ सिलबट्टा सदियों से भारतीय घरों का हिस्सा रहा है. पहले के समय में महिलाएं सुबह-सुबह ताजा चटनी सिलबट्टे पर पीसकर परिवार को परोसती थीं. उसका स्वाद इतना लाजवाब होता था कि लोग बार-बार खाने की फरमाइश करते थे. मिक्सी से बनी चटनी की तुलना में सिलबट्टे पर पिसी चटनी में मसालों और सब्ज़ियों का असली रस निकलता है.
देसी स्वाद की खासियत
सिलबट्टे पर पीसने से हरी मिर्च, धनिया, लहसुन, प्याज़ और टमाटर जैसी सामग्री धीरे-धीरे मिलती है. इस प्रक्रिया में उनका असली फ्लेवर बरकरार रहता है. यही वजह है कि यह चटनी स्वाद में तीखी, खट्टी और चटपटी बनती है. खासकर जब पराठे, खिचड़ी या दाल-चावल के साथ इसे परोसा जाए, तो उसका मजा दोगुना हो जाता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि सिलबट्टे पर चटनी पीसने से सामग्री के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं. मिक्सी में तेज घुमाव और गर्मी के कारण ये तत्व नष्ट हो जाते हैं, जबकि सिलबट्टे की धीमी प्रक्रिया स्वाद और पौष्टिकता दोनों को बनाए रखती है. इसलिए, सिलबट्टे की चटनी को सेहतमंद विकल्प भी माना जाता है.
परंपरा और आज की रसोई
हालांकि आधुनिक जीवनशैली में अब ज़्यादातर लोग मिक्सी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन त्योहारों, पारिवारिक आयोजनों और गांवों में आज भी सिलबट्टे की चटनी का चलन कायम है. यह सिर्फ एक रेसिपी नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और विरासत की झलक है, जो नई पीढ़ी को देसी स्वाद से जोड़ती है.
निष्कर्ष: कुल मिलाकर, सिलबट्टे की चटनी भारतीय रसोई की वह अनमोल विरासत है, जो स्वाद, सेहत और संस्कृति-तीनों को साथ लेकर चलती है. अगर आप भी खाने में असली देसी स्वाद चाहते हैं, तो कभी-कभी सिलबट्टे पर चटनी ज़रूर पीसें. इसका जायका न केवल आपके स्वाद को संतुष्ट करेगा, बल्कि पुराने जमाने की यादें भी ताजा कर देगा.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
.
https://hindi.news18.com/news/lifestyle/recipe-silbatta-chatni-traditional-taste-news-in-hindi-local18-9650570.html